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बाबू चिन्तामणि घोष की जयन्ती के अवसर पर गोष्ठी आयोजित

 “बाबू चिन्तामणि घोष संघर्ष-समर्पण के पर्याय थे। वंग-भाषी होकर भी उन्होंने हिन्दी के सम्वर्द्धन और उन्नयन के लिए जो किया, वह कभी नहीं भुलाया जा सकता । पराधीन भारत में इण्डियन प्रेस की स्थापना कर उन्होंने जहाँ अपने साहसिक व्यक्तित्व का परिचय दिया तो दूसरी ओर ‘सरस्वती’ और ‘बालसखा’ जैसी पत्रिकाएँ हिन्दी-जगत को विरासत स्वरूप देकर इतिहास रचा । बाबू श्यामसुन्दरदास, आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी, बाबू पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी और पंडित देवीदत्त शुक्ल जैसे समर्पित और यशस्वी सम्पादक भी उन्हीं की देन रहे । हिन्दी-जगत उनका सदैव ऋणी रहेगा ।” 

उक्त मन्तव्य आज इण्डियन प्रेस के सभागार में बाबू चिन्तामणि घोष की जयन्ती के अवसर पर आयोजित गोष्ठी में वक्ताओं के विचारों के सार के रूप में स्पष्ट हुआ।

गोष्ठी में अपने सारगर्भित वक्तव्य में आर्य कन्या महाविद्यालय की एसोसिएट प्रोफेसर डाॅ० मुदिता तिवारी ने बताया कि एक समय में जब आदिकाल, भक्तिकाल और रीतिकाल के कवियों की पांडुलिपियाँ काशी की नागरी प्रचारिणी सभा एकत्रित कर रही थी, तब प्रामाणिक पाठ के साथ ही उनके प्रकाशन की भी चुनौती सामने थी । जिस रामचरितमानस के आधार पर लोकमंगल का मानक गढ़ा गया, उसके शुद्ध संस्करण के प्रकाशन का अनुरोध उस समय बाबू चिंतामणि घोष ने बाबू श्यामसुंदर दास से किया । इसके बाद रामचरितमानस की सात पांडुलिपियों के पाठ के उपरांत एक शुद्ध संस्करण इंडियन प्रेस से प्रकाशित हुआ ।

आज रामचरितमानस घर-घर का हिस्सा है । कहा जा सकता है कि अगर बाबू चिंतामणि घोष ने हिंदी समाज की सेवा ‘सरस्वती’ पत्रिका के प्रकाशन से की, तो बांग्ला साहित्य की सेवा रवींद्रनाथ टैगोर की कृतियों के प्रकाशन से हुई ।

इस अवसर पर सरस्वती के नए अंक का लोकार्पण डॉ शान्ति चौधरी, सुप्रतिक घोष, अरिंदम घोष ने किया

‘सरस्वती’ पत्रिका के सम्पादक रविनन्दन सिंह ने विषय-प्रवर्तन करते हुए कहा कि आज हम सब जिस हिन्दी भाषा के लिखित रूप के उत्तराधिकारी हैं, उसके आधार में तीन मनीषियों का विशेष योगदान रहा है-भारतेन्दु, आचार्य द्विवेदी तथा प्रेमचंद । यह बाबू चिन्तामणि घोष के व्यक्तित्व का कमाल था कि संस्कृतज्ञ और तत्समनिष्ठ शब्दावली का प्रयोग करनेवाले पंडित महावीरप्रसाद द्विवेदी ने ‘सरस्वती’ के सम्पादक के रूप में आम जनमानस की सहज-सरल भाषा का प्रयोग करने का व्रत लिया और उसमें सफल तो हुए ही हिन्दी-जगत को भी उन्होंने उसी भाषा शैली में ढालने का ऐतिहासिक कार्य किया।इस तरह बाबू चिन्तामणि घोष का हिन्दी भाषा के लिए अत्यन्त उल्लेखनीय योगदान है ।

साहित्यकार एवं सामाजिक क्षेत्र से जुड़ी डा० शान्ति चौधरी का मानना रहा कि महापुरुषों को उनके व्यक्तित्व-कर्तृत्व के कारण याद किया जाता है और वे सदैव अमर रहते हैं । बिना किसी कामना और दिखावे के चिन्तामणि बाबू ने चाहे मुद्रण का क्षेत्र हो या साहित्य-पत्रकारिता का, सदैव मिशनरी ध्येय से कार्य किया । तभी ‘सरस्वती’ जैसी कालजयी पत्रिका प्रकट हो सकी और इण्डियन प्रेस से अगणित लोकहितकारी पुस्तकें प्रकाशित हो सकीं । सुखद यह है कि उनकी ‘सरस्वती’ पुनः प्रकाशित होने लगी है । हिन्दी के अनुरागियों का कर्तव्य है कि वे अधिकाधिक संख्या में ‘सरस्वती’ से जुड़ें और लाभान्वित हों ।

‘सरस्वती’ पत्रिका के सम्पादक अनुपम परिहार ने चिन्तामणि घोष और आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी के अन्तर्सम्बन्धों पर कई रोचक बातें बतायीं ।घोष बाबू विशाल हृदय के धनी और नेक इंसान थे ।उनका सरल और अपनत्व व्यवहार सबको आकर्षित कर लेता था । यही कारण रहा कि आचार्य द्विवेदी सहित उस समय के सभी साहित्यकार उनके प्रेमपाश में आबद्ध से हो गए थे । उनका विराट व्यक्तित्व-कर्तृत्व कभी नहीं भुलाया जा सकता ।

व्रतशील शर्मा ने भावुकता के साथ चिन्तामणि बाबू और अपने पितामह तथा ‘सरस्वती’ के लम्बे समय तक सम्पादक रहे पंडित देवीदत्त शुक्ल के आत्मीय सम्बन्धों से जुड़े संस्मरण सुनाए । घोष बाबू अकेले ऐसे महापुरुष थे, जिन्होंने अपने सम्पादकों को वह सम्मान दिया, वह कम ही देखने को मिलता है । आचार्य द्विवेदी और पंडित देवीदत्त शुक्ल को आजीवन पेंशन की व्यवस्था करानेवाले घोष बाबू ही थे। वैसे तो समग्र हिन्दी-जगत उनका ऋणी है और रहेगा, लेकिन हमारे परिवार पर उनकी जैसी दया-कृपा रही, उसे हम सब कभी नहीं भूल सकते।

इण्डियन प्रेस के प्रबन्धन से जुड़े अरिंदम घोष ने कहा कि मेरे लिए यह गौरव की बात है कि हम सब घोष बाबू की चौथी पीढ़ी के सदस्य हैं । संचालन वेदप्रकाश पाण्डेय ने किया । इण्डियन प्रेस के प्रबन्धक सुप्रतीक घोष ने आभार ज्ञापित किया ।

गोष्ठी का प्रारम्भ इण्डियन प्रेस के सभागार में अवस्थित घोष बाबू की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं ‘सरस्वती’ पत्रिका नवीन अंक के लोकार्पण के साथ हुआ ।

गोष्ठी में बृजेश गुप्त, अनिल कनौजिया, अरुण गुप्त, श्रीप्रकाश भट्ट, अरविन्द मौर्य, हितेश सिंह, छविपाल सिंह, रघुनाथ द्विवेदी, एस० के० चन्दौला, खुर्शीद अहमद, आसिफ खान, डी० के० भट्टाचार्य सहित अन्य उपस्थित रहे ।

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