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Tag Archives: “कुदाल से कलम तक”: रामधनी द्विवेदी:1

“क्लिनिक पर अखबार का हमला”: कुदाल से कलम तक” : 66 : रामधनी द्विवेदी

“कुदाल से कलम तक”66 जब संगम ने बुलाया : 21 “क्लिनिक पर अखबार का हमला ..?”   रामधनी द्विवेदी ….यह जानकर आश्‍चर्य होगा कि मैने अपनी मां से कभी खाना नहीं मांगा। यह अलग बात है कि वह मेरे हर भाव को जानती थी, कब मुझे खाना चाहिए, मुझे क्‍या पसंद ...

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“तुम भूमिहार हो क्‍या…?” कुदाल से कलम तक”:18: रामधनी द्विवेदी

“कुदाल से कलम तक” जब संगम ने बुलाया -18 कबाड़ी को बिकी किताबें रामधनी द्विवेदी मैने अपनी पुस्‍तकों को गांव की लाइब्रेरी में देने की जो बात लिखी, उसके बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट के अधिवक्‍ता राजेश कुमार पांडेय की टिप्‍पणी आई जिसमे उन्‍होंने प्रख्‍यात भाषाविद् डा उदय नारायण तिवारी की ...

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“पत्रकारिता की दुनिया :9”: “कुदाल से कलम तक”: रामधनी द्विवेदी :37: ” जनवार्ता से आज”

रामधनी द्विवेदी आज जीवन के 71 वें वर्ष में जब कभी रुक कर थोड़ा पीछे की तरफ झांकता हूं तो सब कुछ सपना सा लगता है। सपना जो सोच कर नहीं देखा जाता। जिसमें आदमी कहां से शुरू हो कर कहां पहुंच जाता है? पता नहीं क्‍या-क्‍या घटित होता है? ...

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“पत्रकारिता की दुनिया” :12″: “कुदाल से कलम तक”: रामधनी द्विवेदी :40: “रिपोर्टिंग “

रामधनी द्विवेदी थोड़ा पीछे की तरफ झांकता हूं तो सब कुछ सपना सा लगता है। सपना जो सोच कर नहीं देखा जाता। जिसमें आदमी कहां से शुरू हो कर कहां पहुंच जाता है? पता नहीं क्‍या-क्‍या घटित होता है? कभी उसमें कुछ दृश्‍य और लोग पहचाने से लगते हैं, तो कभी ...

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“पत्रकारिता की दुनिया :7”: “कुदाल से कलम तक”: रामधनी द्विवेदी :35: “बनारस के प्रदीप जी”

रामधनी द्विवेदी आज जीवन के 71 वें वर्ष में जब कभी रुक कर थोड़ा पीछे की तरफ झांकता हूं तो सब कुछ सपना सा लगता है। सपना जो सोच कर नहीं देखा जाता। जिसमें आदमी कहां से शुरू हो कर कहां पहुंच जाता है? पता नहीं क्‍या-क्‍या घटित होता है? ...

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“पत्रकारिता की दुनिया :4”: “कुदाल से कलम तक”: रामधनी द्विवेदी :32:

रामधनी द्विवेदी आज जीवन के 71 वें वर्ष में जब कभी रुक कर थोड़ा पीछे की तरफ झांकता हूं तो सब कुछ सपना सा लगता है। सपना जो सोच कर नहीं देखा जाता। जिसमें आदमी कहां से शुरू हो कर कहां पहुंच जाता है? पता नहीं क्‍या-क्‍या घटित होता है? ...

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पत्रकारिता की शुरुआत: 2: “कुदाल से कलम तक”: रामधनी द्विवेदी :30:

रामधनी द्विवेदी आज जीवन के 71 वें वर्ष में जब कभी रुक कर थोड़ा पीछे की तरफ झांकता हूं तो सब कुछ सपना सा लगता है। सपना जो सोच कर नहीं देखा जाता। जिसमें आदमी कहां से शुरू हो कर कहां पहुंच जाता है? पता नहीं क्‍या-क्‍या घटित होता है? ...

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“कुदाल से कलम तक”: रामधनी द्विवेदी :28: “वीराने का बादशाह”

रामधनी द्विवेदी आज जीवन के 71 वें वर्ष में जब कभी रुक कर थोड़ा पीछे की तरफ झांकता हूं तो सब कुछ सपना सा लगता है। सपना जो सोच कर नहीं देखा जाता। जिसमें आदमी कहां से शुरू हो कर कहां पहुंच जाता है? पता नहीं क्‍या-क्‍या घटित होता है? ...

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“कुदाल से कलम तक”: रामधनी द्विवेदी :27: “अलगौझी “

रामधनी द्विवेदी आज जीवन के 71 वें वर्ष में जब कभी रुक कर थोड़ा पीछे की तरफ झांकता हूं तो सब कुछ सपना सा लगता है। सपना जो सोच कर नहीं देखा जाता। जिसमें आदमी कहां से शुरू हो कर कहां पहुंच जाता है? पता नहीं क्‍या-क्‍या घटित होता है? ...

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“कुदाल से कलम तक”: रामधनी द्विवेदी :26: “जब मौत के मुुंंह से निकला “

रामधनी द्विवेदी आज जीवन के 71 वें वर्ष में जब कभी रुक कर थोड़ा पीछे की तरफ झांकता हूं तो सब कुछ सपना सा लगता है। सपना जो सोच कर नहीं देखा जाता। जिसमें आदमी कहां से शुरू हो कर कहां पहुंच जाता है? पता नहीं क्‍या-क्‍या घटित होता है? ...

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