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“दोपहर 12 बजे की लू में भी भरा पूरा बाजार दिखा”: RAMDHANI DWIVEDI

   रामधनी द्विवेदी “दोपहर 12 बजे की लू में भी भरा पूरा बाजार दिखा” RAMDHANI DWIVEDI “मेरी सांसों में बसा मेरा गांव” जब मैं जौनपुर-बनारस मार्ग पर जलालपुर चौमुहानी पर पहुंचा तो वह पहचान में ही नहीं आई। मैं तीन साल बाद गांव जा रहा था और चौमुहानी की पहचान ...

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“अब गांवों में भी पानी का संकट”: रामधनी द्विवेदी

RAMDHANI DWIVEDI अब गांवों में भी पानी का संकट ! साल गर्मी के महीने आते ही हम एक कुएं पर पानी लेने के लिए लगी भीड़ और रस्‍सी से पानी ऊपर खींचते लोग, मीलों दूर से पानी सिर पर ढो कर लाती महिलाएं, कुंओं पर ताला लगाने, जमीन खोद कर ...

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पत्रकारिता की शुरुआत: 2: “कुदाल से कलम तक”: रामधनी द्विवेदी :30:

रामधनी द्विवेदी आज जीवन के 71 वें वर्ष में जब कभी रुक कर थोड़ा पीछे की तरफ झांकता हूं तो सब कुछ सपना सा लगता है। सपना जो सोच कर नहीं देखा जाता। जिसमें आदमी कहां से शुरू हो कर कहां पहुंच जाता है? पता नहीं क्‍या-क्‍या घटित होता है? ...

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पत्रकारिता की शुरुआत: 1: “कुदाल से कलम तक”: रामधनी द्विवेदी :29:

रामधनी द्विवेदी आज जीवन के 71 वें वर्ष में जब कभी रुक कर थोड़ा पीछे की तरफ झांकता हूं तो सब कुछ सपना सा लगता है। सपना जो सोच कर नहीं देखा जाता। जिसमें आदमी कहां से शुरू हो कर कहां पहुंच जाता है? पता नहीं क्‍या-क्‍या घटित होता है? ...

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“कुदाल से कलम तक”: रामधनी द्विवेदी :27: “अलगौझी “

रामधनी द्विवेदी आज जीवन के 71 वें वर्ष में जब कभी रुक कर थोड़ा पीछे की तरफ झांकता हूं तो सब कुछ सपना सा लगता है। सपना जो सोच कर नहीं देखा जाता। जिसमें आदमी कहां से शुरू हो कर कहां पहुंच जाता है? पता नहीं क्‍या-क्‍या घटित होता है? ...

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“कुदाल से कलम तक”: रामधनी द्विवेदी :26: “जब मौत के मुुंंह से निकला “

रामधनी द्विवेदी आज जीवन के 71 वें वर्ष में जब कभी रुक कर थोड़ा पीछे की तरफ झांकता हूं तो सब कुछ सपना सा लगता है। सपना जो सोच कर नहीं देखा जाता। जिसमें आदमी कहां से शुरू हो कर कहां पहुंच जाता है? पता नहीं क्‍या-क्‍या घटित होता है? ...

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“कुदाल से कलम तक”: रामधनी द्विवेदी :25: “प्रैक्टिकल “

रामधनी द्विवेदी आज जीवन के 71 वें वर्ष में जब कभी रुक कर थोड़ा पीछे की तरफ झांकता हूं तो सब कुछ सपना सा लगता है। सपना जो सोच कर नहीं देखा जाता। जिसमें आदमी कहां से शुरू हो कर कहां पहुंच जाता है? पता नहीं क्‍या-क्‍या घटित होता है? ...

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“कुदाल से कलम तक”: रामधनी द्विवेदी :24: ” जासूसी उपन्‍यास “

रामधनी द्विवेदी आज जीवन के 71 वें वर्ष में जब कभी रुक कर थोड़ा पीछे की तरफ झांकता हूं तो सब कुछ सपना सा लगता है। सपना जो सोच कर नहीं देखा जाता। जिसमें आदमी कहां से शुरू हो कर कहां पहुंच जाता है? पता नहीं क्‍या-क्‍या घटित होता है? ...

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“कुदाल से कलम तक”: रामधनी द्विवेदी :23: “डीबीएस कालेज “

रामधनी द्विवेदी आज जीवन के 71 वें वर्ष में जब कभी रुक कर थोड़ा पीछे की तरफ झांकता हूं तो सब कुछ सपना सा लगता है। सपना जो सोच कर नहीं देखा जाता। जिसमें आदमी कहां से शुरू हो कर कहां पहुंच जाता है? पता नहीं क्‍या-क्‍या घटित होता है? ...

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“कुदाल से कलम तक”: रामधनी द्विवेदी :22: ” जैबलिन थ्रो “

रामधनी द्विवेदी आज जीवन के 71 वें वर्ष में जब कभी रुक कर थोड़ा पीछे की तरफ झांकता हूं तो सब कुछ सपना सा लगता है। सपना जो सोच कर नहीं देखा जाता। जिसमें आदमी कहां से शुरू हो कर कहां पहुंच जाता है? पता नहीं क्‍या-क्‍या घटित होता है? ...

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