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Tag Archives: दैनिक जागरण

अलविदा वीरेंद्र बाबू अलविदा…! आप बहुत याद आएंगे

श्रद्धा स्मरण स्व. वीरेंद्र कुमार पूर्व निदेशक और पूर्व स्थानीय संपादक, दैनिक जागरण वाराणसी/ प्रयागराज ************************ अलविदा वीरेंद्र बाबू अलविदा…! आप बहुत याद आएंगे वरिष्ठ पत्रकार रतिभान त्रिपाठी वीरेंद्र बाबू नहीं रहे..एपी दीक्षित के ये शब्द मेरे लिए स्तब्धकारी थे। अभी कुछ महीनों पहले ही तो वीरेंद्र जी से बात ...

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“क्लिनिक पर अखबार का हमला”: कुदाल से कलम तक” : 66 : रामधनी द्विवेदी

“कुदाल से कलम तक”66 जब संगम ने बुलाया : 21 “क्लिनिक पर अखबार का हमला ..?”   रामधनी द्विवेदी ….यह जानकर आश्‍चर्य होगा कि मैने अपनी मां से कभी खाना नहीं मांगा। यह अलग बात है कि वह मेरे हर भाव को जानती थी, कब मुझे खाना चाहिए, मुझे क्‍या पसंद ...

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“पत्रकारिता के पांच ‘डब्‍ल्‍यू’ और एक ‘एच’ :3”: “कुदाल से कलम तक”: रामधनी द्विवेदी :31:

रामधनी द्विवेदी आज जीवन के 71 वें वर्ष में जब कभी रुक कर थोड़ा पीछे की तरफ झांकता हूं तो सब कुछ सपना सा लगता है। सपना जो सोच कर नहीं देखा जाता। जिसमें आदमी कहां से शुरू हो कर कहां पहुंच जाता है? पता नहीं क्‍या-क्‍या घटित होता है? ...

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“कुदाल से कलम तक”: रामधनी द्विवेदी :18: “ट्यूशन” 

रामधनी द्विवेदी आज जीवन के 71 वें वर्ष में जब कभी रुक कर थोड़ा पीछे की तरफ झांकता हूं तो सब कुछ सपना सा लगता है। सपना जो सोच कर नहीं देखा जाता। जिसमें आदमी कहां से शुरू हो कर कहां पहुंच जाता है? पता नहीं क्‍या-क्‍या घटित होता है? ...

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“कुदाल से कलम तक”: रामधनी द्विवेदी :4: “मेरा निर्माण”  

रामधनी द्विवेदी आज जीवन के 71 वें वर्ष में जब कभी रुक कर थोड़ा पीछे की तरफ झांकता हूं तो सब कुछ सपना सा लगता है। सपना जो सोच कर नहीं देखा जाता। जिसमें आदमी कहां से शुरू हो कर कहां पहुंच जाता है? पता नहीं क्‍या-क्‍या घटित होता है? ...

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“कुदाल से कलम तक”: रामधनी द्विवेदी :2:

रामधनी द्विवेदी आज जीवन के 71 वें वर्ष में जब कभी रुक कर थोड़ा पीछे की तरफ झांकता हूं तो सब कुछ सपना सा लगता है। सपना जो सोच कर नहीं देखा जाता। जिसमें आदमी कहां से शुरू हो कर कहां पहुंच जाता है? पता नहीं क्‍या-क्‍या घटित होता है? ...

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“कुदाल से कलम तक”: रामधनी द्विवेदी :1:

रामधनी द्विवेदी आज जीवन के 71 वें वर्ष में जब कभी रुक कर थोड़ा पीछे की तरफ झांकता हूं तो सब कुछ सपना सा लगता है। सपना जो सोच कर नहीं देखा जाता। जिसमें आदमी कहां से शुरू हो कर कहां पहुंच जाता है? पता नहीं क्‍या-क्‍या घटित होता है? ...

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