अमेरिकी सैन्य ठिकानों पर ईरान के हमले के बाद अमेरिकी संसद में इस पर वोटिंग हुई और ट्रंप के युद्ध शक्तियों को सीमित करने के लिए यह प्रस्ताव पारित किया गया।
भारत की सकारात्मक भूमिका की स्वीकार्यता
डॉ अरविन्द कुमार त्यागी
जनरल कमांडर कासिम सुलेमानी की हत्या के बाद अमेरिका और ईरान में तनातनी जारी है। कासिम की हत्या और इराक में हवाई हमले के बाद दोनों देशों के बीच जंग जैसे हालात बने हुए हैं। मगर अमेरिका और ईरान के बीच जंग छेड़ने से राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को रोकने के लिए अमेरिकी संसद ने आज प्रस्ताव पारित कर दिया।
इस प्रस्ताव का मतलब है कि अब डोनाल्ड ट्रंप को ईरान के खिलाफ युद्ध का ऐलान करने से पहले कांग्रेस की मंजूरी की जरूरत होगी। हालांकि, अभी इस प्रस्ताव को ऊपरी सदन में पास होना बाकी है। सदन में इस प्रस्ताव को कांग्रेस नेता एलिसा स्लॉटकिन ने पेश किया। एलिसा इससे पहले सीआईए एनालिस्ट एक्सपर्ट के रूप में काम कर चुकी हैं और रक्षा विभाग के अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों में कार्यवाहक असिसटेंट सचिव के रूप में भी सेवा दे चुकी हैं।
इससे पहले समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक, अमेरिकी हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स की स्पीकर नैंसी पेलोसी ने कहा था कि ईरान से युद्ध छेड़ने से राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को रोकने के लिए आज अमेरिकी संसद वोटिंग करेगा। दरअसल, अमेरिकी संसद में ईरान से युद्ध के मसले पर वोटिंग ऐसे समय में हो रही है, जब दोनों देशों के बीच तनाव काफी गहरा गया है।
अमेरिकी सैन्य ठिकानों पर ईरान के हमले के बाद अमेरिकी संसद में इस पर वोटिंग हुई और ट्रंप के युद्ध शक्तियों को सीमित करने के लिए यह प्रस्ताव पारित किया गया। क्योंकि बुधवार को ईरान ने कासिम सुलेमानी की मौत का बदला लेने के लिए इराक में अमेरिकी सैन्य ठिकानों पर करीब दर्जन भर मिसाइलें दागी थीं। ईरान का दावा है कि उसके मिसाइल हमले में अमेरिका के करीब 80 सैनिक मारे गए हैं, मगर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस दावे को खारिज कर दिया है और कहा है कि इस हमले में उनका कोई नुकसान नहीं हुआ है।
बता दें कि ईरान और अमेरिका के बीच तनातनी से मध्य पूर्व क्षेत्र (खाड़ी देशों) में युद्ध का खतरा बढ़ता जा रहा है। इससे खाड़ी देश में हालात बदतर होते जा रहे हैं। इस बीच दुनिया के कईं देश पक्ष-विपक्ष में बंटते नजर आ रहे हैं। अगर ईरान-अमेरिका के बीच युद्ध जैसे हालात बनते हैं तो इसके बुरे परिणाम पूरी दुनिया को देखने भुगतने पड़ सकते हैं।
अमेरिका ने भारत से कहा है कि वो ईरान के साथ मौजूदा जंग की तनातनी को घटाने के पक्ष में है। खाड़ी में जंग के मंडराते बादलों के बीच ईरान से तनाव घटाने का यह स्पष्ट संकेत अमेरिकी रक्षा मंत्री मार्क एस्पर ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से हुई बातचीत में दिया। एस्पर ने गुरूवार को फोन पर खाड़ी के हालात को लेकर राजनाथ सिंह से हुई अपनी बातचीत में अमेरिका के इस अहम कूटनीतिक रुख से भारत को अवगत कराया। रक्षामंत्री ने जापान के रक्षामंत्री तारो कोने से भी ईरान संकट समेत दोनों देशों के रणनीतिक हितों को लेकर फोन पर उनसे बातचीत की।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बुधवार को ईरान के मिसाइल हमले पर दी गई प्रतिक्रिया में तनाव घटाने के कुछ संकेत जरूर दिए थे मगर ट्रंप प्रशासन की ओर से आधिकारिक रुप से इस बारे में कुछ नहीं कहा गया है। इस लिहाज से अमेरिका के इरादों के बारे में एस्पर का राजनाथ सिंह से जाहिर किया गया रुख वैश्विक कूटनीतिक लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है।एस्पर ने राजनाथ से खाड़ी के हालातों विशेषकर ईरान के साथ चल रहे जबरदस्त तनावपूर्ण परिस्थितियों पर बातचीत की। इसी दौरान एस्पर ने राजनाथ सिंह को बताया कि ईराक में अमेरिकी सैन्य अड्डे पर ईरान के मिसाइल हमले के बाद भी अमेरिका खाड़ी में शांति और स्थिरता के लिए ईरान से तनाव घटाने को तैयार है।राजनाथ और एस्पर दोनों ने इस दौरान भारत और अमेरिका के खाड़ी में हितों पर भी चर्चा की। जाहिर तौर पर राजनाथ सिंह ने अमेरिका के इस रुख से सहमति जताते हुए एस्पर से कहा कि भारत बेशकईरान से तनाव घटाने की पहल का पूरा समर्थन करता है और इस दिशा में हर प्रयास किया जाना चाहिए। ईरान के साथ भारत की पुरानी मैत्री है और पेट्रोलियम उत्पादों के लिए भारत खाड़ी देशों पर ही निर्भर है।
ईरान से तनाव घटाने की अमेरिका की जताई गई इच्छा न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया विशेषकर खाड़ी देशों के लिए बेहद सकारात्मक है। भारत के करीब 70 लाख लोग खाड़ी देशों में रोजगार कर रहे हैं जो हर साल अपनी कमाई के अरबों डालर देश में भेजते हैं।एस्पर ने इस क्रम में बीते महीने अमेरिका में भारत-अमेरिका के बीच हुई टू प्लस टू वार्ता के दौरान दोनों देशों के आपसी रणनीति रिश्तों को आगे बढ़ाने पर हुई चर्चा का भी जिक्र किया। राजनाथ सिंह ने एस्पर से फोन पर हुई अपनी बातचीत को लेकर ट्वीट में केवल इतना कहा कि अमेरिकी रक्षामंत्री ने उन्हें खाड़ी के मौजूदा हालातों को लेकर जानकारी दी। जबकि उन्होंने इस पर भारत की चिंता और इस क्षेत्र में अपने हितों से एस्पर को रुबरू कराया। राजनाथ के मुताबिक इस दौरान दोनों ने भारत और अमेरिका के द्विपक्षीय रक्षा सहयोग को और मजबूत बनाने की प्रतिबद्धता दोहरायी।जापानी रक्षामंत्री तारो कोनो से भी राजनाथ सिंह की फोन पर हुई चर्चा में खाड़ी के हालत पर बात हुई। दोनों रक्षा मंत्रियों ने खाड़ी में भारत और जापान के संयुक्त हित को लेकर भी आपसी सहयोग पर बात की। भारत की तरह जापान भी खाड़ी देशों से तेल आयात करता है। इस दौरान भारत-जापान के रक्षा संबंधों और सुरक्षा सहयोग को भी आगे बढ़ाने पर बात हुई.
अमेरिका और ईरान का असर विश्व के बाकी देशों पर भी दिखाई दे रहा है. भारत मध्य पूर्वी एशिया पर बहुत ज्यादा निर्भर है. यदि इस क्षेत्र में तनाव बढ़ता है तो भारत के व्यापार के साथ तेल आयात भी प्रभावित होगा. इस वजह से भारत की चिंता भी काफी हद तक बढ़ गई है. अमेरिका एवं ईरान के बीच तनाव बढ़ने से कच्चे तेल की सप्लाई में कमी आ सकती है. इसीलिए क्रूड के दाम बढ़ गए है. ग्लोबल फाइनेंशियल सर्विसेज कंपनी नोमुरा के अनुमान के अनुसार, कच्चे तेल की कीमतों में 10 डॉलर प्रति बैरल की बढ़ोतरी से भारत के राजकोषीय घाटे तथा करंट अकाउंट बैलेंस पर असर पड़ेगा. सरकारी आंकड़ों अनुसार भारत ने पिछले वित्त वर्ष में अपनी जरूरत के लिए 84 फीसदी कच्चा तेल ईरान से आयात किया था. इस प्रकार कुल आयात तेल के प्रत्येक तीन में से दो बैरल तेल ईरान से आयात होता है. यदि अमेरिका और ईरान के बीच तनाव इसी तरह जारी रहता है तो इसका सीधा असर तेल के दामों पर पड़ेगा.अमेरिका और ईरान के बीच तनाव बरकरार रहता है, तो तेल की कीमतों में बढ़ोतरी होगी. इसका नतीजा यह होगा कि भारत को तेल के लिए ज्यादा रकम चुकानी होगी. इससे भारत सरकार के वित्तीय घाटा और भी ज्यादा सकता है.
बढ़ सकती है महंगाई
अमेरिका और ईरान के बीच तनाव बरकरार रहने से तेल की कमी हो सकती है. तेल की कमी होने से इसकी मौजूदा कीमतों में वृद्धि होगी. इसका नतीजा यह होगा है कि उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतें भी तेजी से बढ़ेंगी. इस वजह से देश में महंगाई बढ़ जाएगी. चाबहार पोर्ट में करोड़ों डॉलर का निवेश: भारत ने ईरान के चाबहार पोर्ट में करोड़ों डॉलर का निवेश कर रखा है. भारत का प्रयास है कि ईरान के रास्ते अफगानिस्तान तक सीधा संपर्क स्थापित किया जा सके. इसके लिए भारत ईरान से अफगानिस्तान तक सड़क बनाने में सहायता कर रहा है. चाबहार के कारण भारत अपने माल को रूस, तजकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, कजकिस्तान तथा उजेबकिस्तान भेज पा रहा है. इससे भारत के व्यापार में लगातार वृद्धि हो रही है. भारत ने साल 2002 में चाबहार बंदरगाह के विकास की नींव रखी थी.