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Eagle: “गरुण” एक शिकारी पक्षी : शिवचरण चौहान

शिकारी पक्षी गरुण

#हिंदू धर्म में गरुड़ को भगवान विष्णु का वाहन माना गया है। बौद्ध और जैन धर्म में भी गरुड़ पक्षी की अनेक कथाएं मिलती हैं।
# हिंदू धर्म ग्रंथों में गरुण को पक्षीराज कहा गया है।
# महर्षि कश्यप की दो पत्नियों विनिता और कद्रू से क्रमशः पंछी और नाग उत्पन्न हुए। विनिता के छोटे पुत्र हैं गरुण देव।

# गरुण एक शिकारी पंछी है जो सारी दुनिया में पाया जाता है। इस की 60 जातियां प्रजातियां पाई जाती हैं।
# सांप छिपकली गिरगिट चिड़िया और छोटे खरगोश इसके मुख्य भोजन है।
# हिंदू धर्म में गरुण पुराण की बहुत मान्यता है। भारत में गर्म का एक मंदिर भी है इसे पंछी मंदिर कहा जाता है। कहते हैं यहां हर रोज गरुण का एक जोड़ा आता है।

शिवचरण चौहान

गरुण एक शिकारी पक्षी है। इस की 60 प्रजातियों के गरुण दुनिया भर में पाए जाते हैं। Eagle  (गरुण) अमेरिका का राष्ट्रीय पंछी है। कई देशों में ध्वज में गरुण का चिन्ह है। भारत में प्राचीन झंडों में गांव पंछी का चित्र बना होता था। आज भी मंदिरों में घरों में एक हाथ से बजाई जाने वाली घंटी को गरुण घंटी कहते हैं।

भारत में पाया जाने वाला गरुण उकाब पक्षी से मिलता जुलता है। गरुण पंछी उत्तरी भारत में हिमालय पर्वत मालाओं में ऊंचे ऊंचे पेड़ों में मैं बैठा या ऊंची चट्टान पर शिकार की तलाश में बैठा देखा जा सकता है।

भगवान विष्णु का वाहन होने के कारण वैसे तो गरुण के तमाम नाम है। पक्षीराज, सुपरण, हिरण्य, मुरियारी, आदि अनेक नामों से जाना जाता है।

Eagle एक सुनहरे भूरे रंग का पंछी है। गरुण की लंबाई करीब ढाई फीट होती है। गरुण में नर मादा एक समान होते हैं। किंतु मादा नर से बड़ी होती है। किसका चेहरा सफेद सोच पीली टेढ़ी और मजबूत होती है। दुम सिलेटी रंग की होती है और पंजे बहुत मजबूत होते हैं जो पंखों से ढके होते हैं। गरुण की निगाह गिद्ध और चील पंछी की तरह तेज होती है। यह कई किलोमीटर दूर आसमान से जमीन पर अपने शिकार को देख लेता है और फिर झपट्टा मारकर उसे उठा ले जाता है। ऊंचे पेड़ या ऊंची चट्टान पर बैठकर यह अपने शिकार को नोच नोच कर खाता है। यह पंछी जहरीले सांप गिरगिट छिपकली छोटी चिड़िया छोटे खरगोश बिल के बाहर निकलने वाले चूहे आदि को अपना शिकार बनाता है।

इनका प्रजनन काल नवंबर दिसंबर से मई-जून तक होता है। मादा पंछी आकार में नर से बड़ी होती है। किसी ऊंचे पेड़ की फुनगी पर या उचे चट्टान पर नर् मादा दोनों अपना घोंसला बनाते हैं। घोसले में पेड़ों की सूखी टहनियां घास फूस और कांटे होते हैं। माता 1 से 3 तक अंडे देती है। करीब 30 दिन के बाद अंडों से बच्चे निकलते हैं। करीब 6 महीने बाद बच्चे जवान हो जाते हैं।

गरुड़ पक्षी पूरे एशिया महाद्वीप यूरोप उत्तरी दक्षिणी अमेरिका और अन्य कई देशों में पाया जाता है। कई देशों में गरुड़ को काफी मान्यता मिली हुई है। अमेरिका का राष्ट्रीय पंछी है गरुण। जर्मनी का राज्य चिन्ह में गरुण की आकृति बनी हुई है। उत्तराखंड में गरुण एक कस्बा है तो दक्षिण भारत में एक पंछी मंदिर है। कहते हैं इस पंछी मंदिर में रोज दोपहर एक गरुण का जोड़ा आता है। जिसे देखने के लिए तमाम भक्त मंदिर में जाते हैं पुजारी पूजा करते हैं। कहते किसी के श्राप के कारण गरम पंछी यहां आते हैं। 6 पंछियों का उद्धार हो चुका है दो पंछी का उद्धार उद्धार कलयुग के अंत तक हो जाएगा। ऐसी पुजारियों की मान्यता है। इस संबंध में वे एक कथा भी सुनाते हैं।

हिंदू धर्म में गरुण को भगवान विष्णु का वाहन कहा गया है। कहते हैं दक्ष प्रजापति की दो पुत्रियां विनिता और कदरू का विवाह महर्षि कश्यप के साथ हुआ था। विनता के दो अंडे हुए जिसमें पहले अंडे को विनीता ने छोड़ दिया उससे अरुण नाम का एक अविकसित बालक पैदा हुआ। अरुण भगवान सूर्य के रथ का चालक बना। विनिता के दूसरे अंडे से गरुण का जन्म हुआ जिसका मुख्य पंछी का और शरीर इंसान का था। एक बार गरुण है देवताओं की सभा से अमृत कलश उठा कर अपने वादे के के अनुसार सर्पों को दे दिया था। सांप अमृत को नहीं पाए थे और इंद्र देव अमृत कलश उठा ले गए थे। कश्यप मुनि की दूसरी पत्नी कद्रू ने एक हजार का जन्म दिया। इन अंडों से सांप निकले इनसे ही नाग वंश की उत्पत्ति हुई। तब से गरुण और नागों की दुश्मनी जग प्रसिद्ध है। गरुण से ही तमाम पंछियों का जन्म हुआ। गरुण सभी पंछियों के पूर्वज हैं। कहते हैं घरों की असाधारण वीरता देखकर भगवान विष्णु ने गरुण को अपना बहन बना लिया।

एक बार पक्षीराज गरुड़ और सुदर्शन चक्र तथा भगवान कृष्ण की सबसे खूबसूरत महारानी सत्यभामा को अपने अपने पर घमंड हो गया था। तब भगवान विष्णु ने हनुमान जी को याद किया। हनुमान जी ने गति यानी तेज चलने में गरुड़ को पछाड़ दिया और सुदर्शन चक्र को अपने मुख में रख लिया । श्री कृष्ण के पास द्वारका पहुंचकर हनुमान जी ने सत्यभामा को सीता जी की दासी बताया। इससे तीनों का घमंड चूर चूर हो गया।

रामकथा को सबसे पहले हनुमान जी ने लिखा और उन पत्थरों को समुद्र में फेंक दिया। इसके बाद शंकर जी ने पार्वती को राम कथा सुनाई। गरुण का घमंड दूर करने के लिए काग भूसुंड जी ने राम कथा गरुण जी को सुनाई थी। ऐसा प्रसंग बाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस में मिलता है।

गरुण एक बहुत तेज शिकारी पक्षी है। इसकी आंखें बहुत तेज होती हैं स्वभाव से चालाक और चतुर पंछी है। कीटनाशकों मोबाइल टावरों के विकरण और कई अन्य कारणों से गरुण आज विलुप्त श्रेणी के पक्षियों में आ गया है। हिंदू धर्म के 18 पुराण और 18 उप पुराणों के अतिरिक्त अनेक ग्रंथों में कथाओं में लोकगीतों में गरुण की कथाएं आती हैं। शिकारी पक्षी को हिंदू जैन और बौद्ध धर्मावलंबी पवित्र पंछी मानते हैं। गरुण पुराण सुनकर लोग भवसागर पार कर जाते हैं। ऐसी मान्यता हिंदुओं में है।
शिवचरण चौहान

(अपने निजी अनुभव खोजो और वैज्ञानिक निष्कर्षों के आधार पर लिखित)
शिव

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