Home / Slider / “दीपावली पुरुषार्थ का प्रतीक”: आचार्य अमिताभ जी महाराज

“दीपावली पुरुषार्थ का प्रतीक”: आचार्य अमिताभ जी महाराज

दीपावली का पर्व उत्तर भारतीय क्षेत्र में बहुत बड़े स्तर पर इस वर्ष 2024 में अक्टूबर की 31 तारीख को ही मनाया जाएगा तथा उसका विशेष पूजन मुहूर्त संध्या काल में 6:04 से 8:00 के मध्य होगा। यद्यपि रात के और भी मुहूर्त होंगे किंतु सामान्य जनों के लिए यही मुहूर्त श्रेयस्कर है।

जहां तक लक्ष्मी के साथ नारायण की पूजा न होने का संदर्भ है, देवशयन होने पर भी लक्ष्मी के साथ नारायण का अभिषेक एवं पूजन संपन्न किया जाना चाहिए। क्योंकि यह कोई पारिवारिक मांगलिक कार्य नहीं है यह त्यौहार है – पर्व है तथा इस पूजन से व्यक्ति को अधिक सौभाग्य की प्राप्ति होगी, इसमें कोई संदेह नहीं है।

किंतु प्रत्येक व्यक्ति का अपना मंतव्य है तथा उसके क्रियान्वयन की उसे स्वतंत्रता है l संयुक्त पूजन करने से नारायण क्रोधित नहीं होंगे l

अपितु शयन के समय पूजा के मंत्र उनको प्रातः काल गायन की स्वर लहरी के रूप में अधिक आनंद ही प्रदान करेंगे और अर्चक का हित संपन्न होगा। 

परम पूज्य संत आचार्य श्री अमिताभ जी महाराज दीपावली के शुभ पर्व पर कहते हैं:

दीपावली मनुष्य के चरम पुरुषार्थ का स्वरूप प्रदर्शित करने वाला पर्व है l

सबसे अधिक अंधकार युक्त रात्रि भी मनुष्य के प्रयासों से सर्वाधिक प्रकाश युक्त हो जाती है l

 श्री राम ने भी नाना प्रकार के संघर्षों के उपरांत भगवती श्री को प्राप्त किया l श्री – धन या सफलता की प्राप्ति बहुत संघर्ष से ही होती है l

अतः हम सभी को जीवन में गहन अंधकार होने पर भी आशा का परित्याग नहीं करना चाहिए, संघर्ष करते रहना चाहिए l एक दिन अवश्य ऐसा आएगा जब अंधकार के कुहासे को चीरता हुआ आशा का और सफलता का सूर्य उदय होगा । “

सभी को दीपावली पर्व की हार्दिक मंगल कामना एवं शुभ आशीर्वाद l

*दीपावली 31 अक्टूबर गुरुवार*

31 अक्टूबर को दिन में 3 बजकर 12 से अमावस्या आरंभ होकर 1 नवंबर को शाम 5 बजकर 13 मिनट तक रहेगी। चूंकि 1 नवंबर को सूर्यास्त के समय अथवा रात्रि में अमावस्या न होने के कारण दीपावली 31 अक्टूबर को ही मनायी जाएगी।

कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाने वाला त्योहार दीपावली हिन्दुओं की आस्था का प्रतीक माना जाता है। इस पर्व के साथ अनेक धार्मिक, पौराणिक एवं ऐतिहासिक मान्यताएं जुड़ी हुई हैं।

मुख्यतया यह पर्व भगवान श्रीराम द्वारा लंकापति रावण पर विजय हासिल करने और अपना चौदह वर्ष का वनवास पूरा करके अयोध्या लौटने की खुशी में मनाया जाता है। इसे ‘प्रकाश-पर्व’ भी कहते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार जब श्रीराम, माता सीता एवं लक्ष्मण जी अयोध्या वापस लौटे थे, तो नगरवासियों ने घर-घर दीप जलाकर खुशियां मनाईं थीं। इसी पौराणिक मान्यतानुसार प्रतिवर्ष घर-घर घी के दीये जलाए जाते हैं और खुशियां मनाई जाती हैं।

सोशल मीडिया

दीपावली भगवान राम के 14 वर्ष के वनवास से अयोध्या लौटने की खुशी में मनाई जाती है तो दीपावली पर लक्ष्मी पूजन क्यों होता है? 

राम और सीता की पूजा क्यों नही? 

दूसरा यह कि दीपावली पर लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी की पूजा क्यों होती है, विष्णु भगवान की क्यों नहीं? लक्ष्मी पूजन का औचित्य क्या है, जबकि दीपावली का उत्सव राम से जुड़ा हुआ है।

दीपावली का उत्सव दो युग, सतयुग और त्रेता युग से जुड़ा हुआ है। सतयुग में समुद्र मंथन से माता लक्ष्मी उस दिन प्रगट हुई थी इसलिए लक्ष्मीजी का पूजन होता है। भगवान राम भी त्रेता युग में इसी दिन अयोध्या लौटे थे तो अयोध्या वासियों ने घर घर दीपमाला जलाकर उनका स्वागत किया था इसलिए इसका नाम दीपावली है। अत: इस पर्व के दो नाम है लक्ष्मी पूजन जो सतयुग से जुड़ा है, दूजा दीपावली जो त्रेता युग प्रभु राम और दीपों से जुड़ा है।

लक्ष्मी गणेश का आपस में क्या रिश्ता है

और दीवाली पर इन दोनों की पूजा क्यों होती है?

लक्ष्मी जी सागर मन्थन में मिलीं, भगवान विष्णु ने उनसे विवाह किया और उन्हें सृष्टि की धन और ऐश्वर्य की देवी बनाया गया। लक्ष्मी जी ने धन बाँटने के लिए कुबेर को अपने साथ रखा। कुबेर बड़े ही कंजूस थे, वे धन बाँटते ही नहीं थे।वे खुद धन के भंडारी बन कर बैठ गए। माता लक्ष्मी खिन्न हो गईं, उनकी सन्तानों को कृपा नहीं मिल रही थी। उन्होंने अपनी व्यथा भगवान विष्णु को बताई। भगवान विष्णु ने कहा कि तुम कुबेर के स्थान पर किसी अन्य को धन बाँटने का काम सौंप दो। माँ लक्ष्मी बोली कि यक्षों के राजा कुबेर मेरे परम भक्त हैं उन्हें बुरा लगेगा।

तब भगवान विष्णु ने उन्हें गणेश जी की विशाल बुद्धि को प्रयोग करने की सलाह दी। माँ लक्ष्मी ने गणेश जी को भी कुबेर के साथ बैठा दिया। गणेश जी ठहरे महाबुद्धिमान। वे बोले, माँ, मैं जिसका भी नाम बताऊँगा , उस पर आप कृपा कर देना, कोई किंतु परन्तु नहीं। माँ लक्ष्मी ने हाँ कर दी।अब गणेश जी लोगों के सौभाग्य के विघ्न, रुकावट को दूर कर उनके लिए धनागमन के द्वार खोलने लगे।कुबेर भंडारी देखते रह गए, गणेश जी कुबेर के भंडार का द्वार खोलने वाले बन गए। गणेश जी की भक्तों के प्रति ममता कृपा देख माँ लक्ष्मी ने अपने मानस पुत्र श्रीगणेश को आशीर्वाद दिया कि जहाँ वे अपने पति नारायण के सँग ना हों, वहाँ उनका पुत्रवत गणेश उनके साथ रहें।

दीवाली आती है कार्तिक अमावस्या को, भगवान विष्णु उस समय योगनिद्रा में होते हैं, वे जागते हैं ग्यारह दिन बाद देव उठनी एकादशी को। माँ लक्ष्मी को पृथ्वी भ्रमण करने आना होता है शरद पूर्णिमा से दीवाली के बीच के पन्द्रह दिनों में।इसलिए वे अपने सँग ले आती हैं अपने मानस पुत्र गणेश जी को।

इसलिए दीवाली को लक्ष्मी गणेश की पूजा होती है।

जय श्री गणेश जी 🙏

जय महालक्ष्मी जी 🙏

Check Also

FIR दर्ज करने के निर्देश को अस्वीकार नहीं किया जा सकता

*S. 156 (3) CrPC  आवेदक के पास तथ्य होने मात्र से मजिस्ट्रेट केवल इसलिए एफआईआर ...