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‘The God who Failed’ (ईश्वर जो असफल हो गया):

राघवेन्द्र विक्रम सिंह, IAS

यह श्री माधव गोडबोले जो एक सम्मानित आई ए एस अधिकारी व भारत सरकार के कई मंत्रालयों में सचिव रह चुके हैं, द्वारा लिखित खोजपूर्ण पुस्तक है जो नेहरू की लीडरशिप का बड़ा बेबाक आकलन करती है. नेहरू की महानताओं का बयान करती इन पुस्तकों में जिन्हें मैं आप सब से शेयर करता रहा हूं, यह स्पष्ट होता जा रहा है कि नेहरू का प्रधानमंत्री बनना देश का कितना बड़ा दुर्भाग्य था.
इस पुस्तक के पृष्ठ 66 व 67 मैं आपसे शेयर कर रहा हूं जिसमें यह बात आई है कि 1961 में लद्दाख में नियुक्त कोर कमांडर Lt Gen SD Dutta की रिपोर्ट ‘the inevitably of war with China, our lack of preparedness … the certainty of our defeat.’ (चीन से युद्ध की स्थिति में निश्चित पराजय की स्थिति) के तथ्यों पर नेहरू द्वारा कोई ध्यान न देकर उस रिपोर्ट पर यह टिप्पणी लिखी जाती है कि’ मेरे जीवनकाल में चीन से युद्ध संभव ही नहीं है.‘ उसके बुद्धि-विवेक का आकलन करने को आप स्वतंत्र हैं.और फिर चीन का हमला व हमारी पराजय होती है.


लेखक ने आगे पृष्ठ 67 पर BK Nehru जो अमेरिका में भारत के राजदूत थे, की पुस्तक Nice guys finish second का एक पैरा उद्धृत किया है, ‘ पराजय को सामने देखते हुए नेहरू जिस बेचारगी से, दया की भीख मांगते हुए राष्ट्रपति केनेडी को पत्र लिखते हैं और सैन्य सहायता मांगते हैं, उसे पढ़ कर मेरे लिए अपने आंसुओं को रोक पाना संभव नहीं हो पा रहा था.’
जो व्यक्ति घमंड में अपने जनरल को जवाब देता है कि चीन उनके जीवन काल में कभी हमला नहीं करेगा, वह कितना मजबूर होकर अमेरिकन राष्ट्रपति की चौखट पकड़े बैठा है.


यह पुस्तक माऊंटबेटन की एक ब्रिटिश एजेंट जैसी भूमिका को स्पष्टतः सामने ले आती है जिसने कश्मीर मामले में नेहरू को मूर्ख बनाया. मूर्ख क्या बनाया, वे एक भावनाओं से सरोबार मूर्ख थे ही. माऊंटबेटन उन्हें एक केजी (गदहिया गोल) के बच्चे की तरह चला रहे थे, हमारे महान् नेता नेहरू चल रहे थे. और भी सन्दर्भ है, पुस्तक पढ़ेंगे तो सर पीटने की तबीयत होने लगती है.
लेखक: राघवेन्द्र विक्रम सिंह आईएएस से.नि.

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