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साहित्य अकादेमी: “साहित्य हर सीमा के प्रतिबंध से स्वतंत्र होता है”

साहित्य अकादेमी की प्रेमचंद महत्तर सदस्यता बाङ्ला देश के सफ़िक़ुन्नबी सामादी को अर्पित

अनुवाद दुनिया को जोड़ने का जरिया है – सफ़िक़ुन्नबी सामादी

साहित्य हर सीमा के प्रतिबंध से स्वतंत्र होता है – माधव कौशिक

नई दिल्ली, 19 नवंबर 2024।

साहित्य अकादेमी ने आज अपनी प्रतिष्ठित प्रेमचंद महत्तर सदस्यता बाङ्ला देश के प्रख्यात लेखक और अनुवादक प्रोफ़ेसर सफ़िक़ुन्नबी सामादी को अर्पित की। साहित्य अकादेमी के तृतीय तल स्थित सभाकक्ष में आयोजित एक गरिमामय समारोह में उन्हें यह महत्तर सदस्यता साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष माधव कौशिक द्वारा प्रदान की गई।

कार्यक्रम के आरंभ में साहित्य अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने सफ़िक़ुन्नबी सामादी का स्वागत करते हुए प्रशस्ति-पाठ किया। अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में माधव कौशिक ने कहा कि मानचित्र पर जितनी भी सीमाएँ हो लेकिन साहित्य हर सीमा के प्रतिबंध से स्वतंत्र होता है। साहित्य ही इंसान को इंसान से जोड़ता है। अतः आज सफ़िक़ुन्नबी सामादी का सम्मानित होना उस संवेदना का सम्मान है जो बिना सीमा के हमसब के दिलों में संचारित होती है। हमें सफ़िक़ुन्नबी सामादी को ऐसा विश्व नागरिक मानना चाहिए जो दो देशों के बीच की संवेदनाओं को आपस में जोड़ने का महत्त्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं। अपने स्वीकृति वक्तव्य में प्रो. सफ़िक़ुन्नबी सामादी ने कहा कि मैं भारतीय उपमहाद्वीप को जोड़ना चाहता हूँ और यह काम भाषाओं के जोड़ने से ही संभव होगा। हिंदी, उर्दू में अनुवाद के जरिए मैं पहले घर, फिर पड़ोस और फिर दुनिया को जोड़ने का काम करना चाहता हूँ। मैं जब अनुवाद करता हूँ तो मैं एक संस्कृति को अनूदित करता हूँ। मैं मानता हूँ कि यह काम धीरे-धीरे एक कारवाँ का रूप लेगा और इस महाद्वीप की सभी संस्कृतियाँ आपस में मेल-मिलाप की तरह अग्रसर होंगी।

ज्ञात हो कि आज सम्मानित सफ़िक़ुन्नबी सामादी का जन्म 27 अगस्त 1963 को बाङ्लादेश के नारायणगंज के सोनारगाँव में हुआ। आपकी शैक्षणिक योग्यता में रवींद्र भारती विश्वविद्यालय से डी-लिट् और पी-एच.डी. की उपाधियों के अलावा जहाँगीर नगर विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी में स्नातक (ऑनर्स) और स्नातकोत्तर की उपाधियाँ शामिल हैं। बाङ्ला साहित्य में व्यापक रूप से प्रकाशित होने वाले प्रो. सामादी की अब तक 4 मौलिक पुस्तकें, अनुवाद की 18 पुस्तकें और 3 संपादित पुस्तकें प्रकाशित हैं। आपकी मौलिक पुस्तकों में कथासाहित्ये वास्तवता: शरतचंद्र और प्रेमचंद, नज़रूलेर गान: कवितार स्वाद, ताराशंकरेर छोटोगल्प: जीवनेर शिल्पित सत्य और साहित्य-गवेषणा: विषय ओ कौशल (संयुक्त प्रकाशन) शामिल हैं। आपकी बाङ्ला की अनूदित रचनाओं में उर्दू और हिंदी की विविध साहित्यिक पुस्तकों से विभिन्न शैलियों में आच्छादित कविताएँ, नाटक, कहानियाँ, उपन्यास और निबंध शामिल हैं। आपके कुछ उल्लेखनीय अनुवादों में गुलज़ार की त्रिवेणी और दो लोग, प्रेमचंद की साहित्य का उद्देश्य, धर्मवीर भारती की अंधायुग, अजय शुक्ल की ताजमहल का टेंडर एवं द्वितीय अध्याय, अमृता प्रीतम की चुनिंदा कहानियाँ, गीतांजलि श्री की चुनिंदा कहानियाँ, निर्वाचित गल्प: इस्मत चुगताई और निर्वाचित कविता: किश्वर नाहिद शामिल हैं। हिंदी में अनूदित आपकी पुस्तक जन्मशतवर्ष की श्रद्धांजलि: बांग्लादेश के राष्ट्रपिता बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान को निवेदित सौ कविताएँ, राष्ट्रपिता बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान को उनकी जन्म शताब्दी के दौरान श्रद्धांजलि के रूप में प्रकाशित की गई थी। राजशाही विश्वविद्यालय में सन् 1988 से 35 वर्षों से अधिक समय से शिक्षण से जुड़े प्रो. सामादी ने बाङ्ला विभाग में व्याख्याता से सहायक प्रोफ़ेसर, एसोसिएट प्रोफ़ेसर और सन् 2002 से प्रोफ़ेसर तक विभिन्न पदों पर सफलतापूर्वक कार्य किया है। वर्तमान में आप राजशाही विश्वविद्यालय के बाङ्ला विभाग में प्रोफ़ेसर के रूप में कार्यरत हैं। कार्यक्रम में रामकुमार मुखोपाध्याय, सुरेश ऋतुपर्ण, मोहन हिमथाणी, नसीब सिंह मन्हास आदि विभिन्न भाषाओं के लेखक एवं साहित्य प्रेमी उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन अकादेमी के उपसचिव एन. सुरेशबाबु ने किया।

(के. श्रीनिवासराव)

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