आचार्य अमिताभ जी महाराज
हम सनातनी हिंदू हैं l हमारे आराध्य, हमारे प्रतीक पुरुष, हमारे सभी ग्रंथ किसी भी प्रकार का प्रयोग किए जाने के अधिकार क्षेत्र में आते हैं l हमें विरोध करने का अधिकार नहीं है l क्योंकि हमारा विरोध धर्म के प्रति निरपेक्ष भावना का अपमान है l तथा हमारे सांप्रदायिक होने का द्योतक है l किंतु मैं इसका खतरा उठा रहा हूं l
बिना यह विचार किए हुए कि हमारे मन को, हमारी आस्था को, हमारे विश्वास को, हमारे संस्कार को, इन सब वाहियात एवं अस्वीकार किए जाने वाले प्रयोगों से कितनी ठेस पहुंचती है l
मैं यहां पर किसी के द्वारा बनाई हुई, जिसका मैं नाम लेना भी आवश्यक नहीं समझता, पिक्चर या चलचित्र “आदि पुरुष” की चर्चा कर रहा हूं l
आप संवाद देख लीजिए, निस्संदेह सड़क छाप, अस्वीकार्य हैं। वर्तमान युग के बच्चों के साथ रामायण को कनेक्ट करने के लिए रामायण के स्तर को कीचड़ के स्तर तक लाने की कोई आवश्यकता नहीं है l
जैसा कि मनोज मुंतशिर ने अपने वक्तव्य में लिखे गए संवादों की व्यवहारिकता एवं औचित्य को सिद्ध करने का अनुचित एवं निर्लज्ज प्रयास किया है।
फिल्म में रावण किसी ड्रग पेडलर या स्मगलर या मुस्लिम काल के किसी खूंखार सुल्तान की शक्ल का दिखाई देता है l यह कौन सा प्रयोग है ? वह कोई रक्त पीने वाला ड्रैकुला नहीं है जो चमगादड़ पर भगवती को ले जाएगा l वह उच्च कुलीन वेदविद ब्राह्मण है जो अपनी राक्षसी वृत्ति के कारण राक्षस हो गया l स्वरूप उसका सौम्य ही है l यह समझना चाहिए l
इन मूर्खों को यह नहीं समझ में आता समस्त ग्रंथ इस बात का निर्देश करते हैं कि राक्षस तामसिक वृत्ति के प्रभाव होने के कारण बने हैं, अपनी उच्च जाति, उच्च कुल के होने के बावजूद। न कि उन के सींग, पूंछ या दांत होते थे l उदाहरण के लिए यहां पर राघवेंद्र का स्वरूप सौम्य होता है l धीरोदात्त नायक का ज्ञान प्राप्त करना है तो शास्त्र चिंतन करना चाहिए l
इसके अतिरिक्त पिक्चरों के अस्तित्व को एक दीर्घ भीड़ काल हो चुका है, किंतु पात्रों को पजामे वाली धोती पहनाने के सुविधाजनक मोह से निर्देशक मुक्त नहीं हो पाए l
बहुत सी बातें हैं जिनको यहां पर कहना संभव नहीं है, किंतु विचार करने का विषय है कि क्या हमारे धर्म के प्रतीक पुरुषों, ग्रंथों तथा परंपरा के साथ ऐसे ही कुत्सित प्रयोगों की श्रंखला को हम अनंत काल तक यूं ही सहन करते रहेंगे ?
विचार करिए l
ll जय श्री कृष्ण ll