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कविता: ”तुममें से नहीं है कोई राम”: रतिभान त्रिपाठी

 रतिभान त्रिपाठी की कविता

तुममें से नहीं है कोई राम

तुम हर साल
यूं ही
दिखावा करते रहना
मुझे जलाने का
और मैं
यूं ही
अमरत्व पाता रहूंगा
तुम्हारे हाथों।
क्योंकि
तुम तो
दिखावे पर
भरोसा करते हो
राम से ज्यादा
मुझे याद करते हो
मेरा अट्टहास
तुम्हें सुनाई नहीं देता
मैं तुम्हें
दिखाई नहीं देता।
क्योंकि मैं
अनहद नाद में हूं
मैं मन की आंखों में हूं
और वह सुन पाने की
वह देख पाने की
पात्रता तुममें नहीं।
उसके लिए
राम होना पड़ता है।राम तुममें से
कोई भी नहीं।

उन गद्दीनसीनों
में भी नहीं,
जो राम के नाम पर
मेरा ही काम करते हैं।
उन वल्कलधारियों
में भी नहीं,
जो राम का
सिर्फ नाम लेते हैं,
और काम
मेरा ही करते हैं।
मैं
हर युग, हर कालखंड में
हर दंड, हर पाखंड में
हर पिंड, हर ब्रह्मांड में
ऐसे ही अट्टहास करूंगा
ऐसे ही सत्यानाश करूंगा
ऐसे ही लंकाएं बनाऊंगा
ऐसे ही सीताएं हरूंगा
ऐसे ही सूर्पणखाएं पालूंगा
ऐसे ही खर-दूषण लड़ाऊंगा
ऐसे ही मारीचों से छलूंगा
हर पल सृजूंगा मेघनाद
हर घर में कुंभकर्ण सुलाऊंगा
ऐसे ही घूमेगा मेरा विभीषण
तुम्हारे कश्मीर, बंगाल में
क्योंकि
नहीं है तुम में से
कोई
वशिष्ठ और विश्वामित्र
भरद्वाज और वाल्मीकि
लक्ष्मण, भरत और हनुमान
तुम में से नहीं है
कोई
राम।

तुम में से नहीं है
कोई
राम।।

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