बसपा चारो खाने हुई चित, सपा ने साबित किया वही देगी भाजपा को टक्कर, कांग्रेस का बढ़ा वोट प्रतिशत।
योगेश श्रीवास्तव
लखनऊ।
उत्तर प्रदेश की ग्यारह विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में सबसे बड़ा झटका बहुजन समाज पार्टी को लगा है। कभी उपचुनाव न लडऩे वाली बसपा लोकसभा के चुनाव में दस सीटे जीतने के बाद इतनी उत्साहित थी कि उसे लग रहा था कि इसी तरह के परिणाम विधानसभा उपचुनाव में लायेगी।
लेकिन उसे एक सीट पर भी कामयाबी नहीं मिली जबकि भाजपा के बाद सपा ऐसी अकेली पार्टी रही जिसे विधानसभा के इन उपचुनावो में अपेक्षित सफलता मिली। ग्यारह सीटों के परिणाम के बाद से बसपा का यह मिथक भी टूटा है कि लोकसभा में उसे जो दस सीटे मिली थी, वह उसके अपनी बदौलत थी। ये चुनाव जो सभी दलों के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बने थे तो भाजपा को उम्मीद थी कि वह इन चुनावों में भी लोकसभा जैसे परिणाम लाकर अपनी जीत का टैंपों बनाए रखेगी। लेकिन उसकी इस बढ़त को मुख्यविपक्षी दल समाजवादी पार्टी ने ही रोका।
लोकसभा चुनाव के बाद प्रदेशाध्यक्ष बनने के बाद स्वतंत्र देव सिंह के लिए यह सभी उपचुनाव प्रतिष्ठा का प्रश्न बने थे वे जैसे-तैसे अपना फीगर मेनटेन रखने में कामयाब रहे। हरियाणा के विधानसभा चुनाव में भले भाजपा बहुमत से दूर रही हो लेकिन यहां के ग्यारह सीटों के हुए उपचुनाव में मात्र एक सीट गंवाने के बाद भाजपा कांग्रेस और बसपा सरीखी पार्टियों को मुंह चिढ़ाने की स्थिति में है। इन ग्यारह सीटों में हुए उपचुनाव में जहां बसपा ने अपनी एक सीट गंवाई वही स्थिति भाजपा की भी रही।
इन उपचुनावों में खोने के लिए कांग्रेस के पास कुछ भी नहीं था। हालांकि प्रदेशाध्यक्ष बनने के बाद अजय कुमार लल्लू भी इन उपचुनावों को लेकर काफी गंभीर थे। वे स्वयं कई उम्मीदवारों के प्रचार में गए थे। जबकि इन उपचुनावों में प्रचार के मामले में भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवारों की जीत के स्वयं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कई जनसभाएं की थी।
भाजपा को सबसे ज्यादा उम्मीद रामपुर की सदर सीट से काफी उम्मीद थी लेकिन वहां सपा उम्मीदवार तंजीन फातिमा ने अपनी जीत दर्ज कराकर यह साबित कर दिया कि उनके गढ़ में किसी दूसरे की इंट्री इतनी आसान नहीं है। सरकार गठन के बाद जिस तरह सपा नेता मो.आजम खां के खिलाफ एक के बाद मुकदमें कायम हो रहे थे उसके बाद से भाजपा नेतृत्व को लग रहा था कि सरकार द्वारा जो भी कार्रवाई की गई उसका असर इस उपचुनाव में दिखेगा ।
लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। उत्तर प्रदेश की 11 विधानसभा सीटो पर हुए उपचुनाव की नतीजे आने के साथ ही समाजवादी पार्टी ने साबित कर दिया है कि उत्तर प्रदेश में प्रचंड बहुमत के साथ काबिज भारतीय जनता पार्टी का मुकाबला केवल वही ही कर सकती है। उपचुनाव के नतीजे जहां समाजवादी पार्टी के लिए उत्साहवर्धक रहे तो वही बसपा के लिए काफी निराशाजनक।
इतना ही नहीं उपचुनाव में सभी 11 सीटों में अधिकतर पर भाजपा का मुख्य मुकाबला सपा से ही हुआ। विधानसभा उपचुनाव में सपा ने भाजपा और बसपा दोनों ही पार्टियों से एक.एक सीट छीन कर यह साबित कर दिया कि लोकसभा चुनाव में भले ही वह पांच सीटों पर सिमट गयी हो लेकिन विधानसभा चुनाव के लिहाज से उसकी सियासी हैसियत अभी भी कायम है और वह उलटफेर करने में सक्षम है। उपचुनाव में दमदार प्रदर्शन के साथ वापसी कर सपा ने यूपी के मुस्लिम वोट बैक अपनी दावेदारी को और मजबूत कर दिया है। सपा ने मुस्लिम वोट बैंक को बता दिया है कि आगामी विधानसभा चुनाव में उसे किस पार्टी का परचम थामना है।
प्रदेश में पहली बार उपचुनाव में उतरी बहुजन समाज पार्टी को भी नतीजों से साफ संदेश मिल गया है कि लोकसभा चुनाव में उसे मिली 10 सीटे केवल सपा के साथ गठबंधन किए जाने के कारण ही मिली है। इस उपचुनाव में बसपा सुप्रीमों मायावती ने दलित.मुस्लिम गठजोड़ का नया प्रयोग किया था जो कि पूरी तरह से असफल साबित हुआ। बसपा सुप्रीमों की रणनीति थी कि दलित वोट तो उनके साथ लामबंद हैए उसमे अगर मुस्लिम वोट का साथ भी मिल जाए तो आगामी विधानसभा चुनाव के लिए पूरे प्रदेश में मुस्लिम वोटों पर बसपा की दावेदारी मजबूत हो जायेगी। यही कारण था कि बसपा ने प्रत्याशी चयन में भी ऐसे प्रत्याशी उतारे जो सपा प्रत्याशी के वोट बैंक में भी सेंध लगा सकें। इतना ही नहीें बसपा इस पूरे उपचुनाव में केवल जलालपुर और इगलास विधानसभा क्षेत्र में ही मुख्य मुकाबले में रही। वह भी तब जबकि इगलास में सपा का प्रत्याशी चुनाव मैदान में नहीं था और जलालपुर में बसपा के बड़े नेता लालजी वर्मा की पुत्री छाया वर्मा चुनाव मैदान में थी।
दरअसलए यह उपचुनाव जहां एक ओर विधानसभा में सीटों की संख्या बढ़ाने या घटाने के लिए था तो वहीं परदे के पीछे लोकसभा चुनाव में हुए सपा.बसपा गठबंधन टूटने के बाद प्रदेश में मुख्य विपक्षी दल की छवि बनाने का भी था। बसपा सुप्रीमों मायावती द्वारा पहली बार उपचुनाव में अपने प्रत्याशी उतारने के पीछे उनकी मंशा सपा को ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाने की थी।