राज्यपाल के अभिभाषण का महत्व
डॉ दिलीप अग्निहोत्री
लखनऊ।
उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने उत्तर प्रदेश विधान मण्डल के दोनों सदनों के वर्ष 2020 के प्रथम सत्र के समवेत अधिवेशन को सम्बोधित करते हुए कहा कि राज्य सरकार जनकल्याण के लिए समर्पित है और सुविचारित नीतियों से उत्तर प्रदेश में एक ऐसा वातावरण तैयार करने के लिए प्रतिबद्ध है, जहां से समृद्धि और विकास के अनेक पथ प्रशस्त होते हैं।
आनंदी बेन पटेल ने कहा कि सरकार अपने हर मिशन, हर संकल्प को जनता के सहयोग से पूरा कर रही है। शीघ्र ही वित्तीय वर्ष 2020-21 का आय-व्ययक सदन में प्रस्तुत किया जाएगा। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि प्रदेश की आम जनता के हित में सभी सदस्यगण राज्य सरकार का सहयोग कर जनआकांक्षाओं को पूरा करने में अपना बहुमूल्य योगदान करेंगे।
राज्यपाल ने कहा कि रामराज्य की परिकल्पना को साकार करने के लिए प्रदेश का सर्वांगीण विकास ही मेरी सरकार की प्राथमिकता है। सुशासन की परिकल्पना, जनकल्याण एवं जनविश्वास के माध्यम से ही पुष्पित एवं पल्वित होती है। इसलिए ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ की नीति अपनाते हुए समाज के सभी वर्गाें का सामाजिक, आर्थिक व शैक्षिक विकास सहित सर्वांगीण विकास कार्यक्रम अनवरत जारी है।
भारतीय संविधान में संसदीय व्यवस्था को अपनाया गया है। इसके अनुसार संघ में राष्ट्रपति और प्रदेशों में राज्यपाल संवैधानिक प्रमुख होते है। संविधान में राष्ट्रपति को संसद और राज्यपाल को विधानमंडल का अंग बताया गया है। इनके हस्ताक्षर के बाद ही सदन से पारित विधेयक कानून का रूप लेता है। इसके अतिरिक्त भी इन संवैधानिक प्रमुखों के अनेक विधायी अधिकार होते है। नवगठित लोकप्रिय सदन के प्रथम और बजट सत्र की शुरुआत राज्यपाल के अभिभाषण से होती है। संसदीय प्रावधान के अनुसार निर्वाचित सरकार राज्यपाल की होती है। इसलिए उनके अभिभाषण में सरकार के कार्यों का सकारात्मक उल्लेख होता है। इस संवैधानिक मर्यादा का सम्मान होना चाहिए। इसके बाद राज्यपाल के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव लाया जाता है। इसमें विपक्ष के पास उनके भाषण की आलोचना का पूरा अवसर रहता है। सार्थक आलोचना तभी संभव है जब अभिभाषण को धैर्य से सुना जाए। संसद में इस मर्यादा का निर्वाह होता है। लेकिन अनेक राज्यों के विधानसभाओं में अभिभाषण पर हंगामें की परंपरा बन गई है। उत्तर प्रदेश में राज्यपाल राम नाईक पर तो कागज के गोले फेंके जाते थे, लगातार सिटी बजाई जाती थी। विरोध का यह रूप संवैधानिक भावना के प्रतिकूल था। इस बार राज्यपाल महिला है, शायद इस लिए केवल हंगामा हुआ।
आनन्दी बेन पटेल ने प्रदेश सरकार के अनेक कार्यों की सराहना की। बजट सत्र की शुरुआत राज्यपाल आनंदीबेन पटेल के अभिभाषण से हुई। उन्होंने दोनों सदनों की संयुक्त बैठक को संबोधित किया। लेकिन कांग्रेस सपा बसपा के नेता प्रदर्शन करने लगे। यह सभी लागे प्ले कार्ड लेकर सरकार के खिलाफ नारेबाजी कर रहे थे। विपक्ष ने विधानसभा के बाहर सरकार विरोधी प्रदर्शन किया। जबकि एक दिन पहले सर्वदलीय बैठक में सदन के सुचारू संचालन पर विचार किया गया था। मुख्यमंत्री तथा नेता सदन योगी आदित्यनाथ ने सत्र के सुचारु संचालन में सत्ता पक्ष के पूरे सहयोगब का आश्वासन दिया था। कहा कि सदन की कार्यवाही बाधित करने से नहीं, बल्कि सदन में प्रभावी और तर्कसंगत चर्चा से समाधान निकलता है। सदन की उच्च गरिमा और मर्यादा को बनाए रखते हुए गम्भीर चर्चा को आगे बढ़ाने से लोकतंत्र के प्रति आमजन की आस्था बढ़ती है। सुझाव या कोई भी बात इतनी प्रभावी और महत्वपूर्ण होनी चाहिए कि वह प्रदेश और देश के लिए कल्याणकारी सिद्ध हो। राज्य सरकार हर विषय पर चर्चा के लिए तैयार रहेगी। पक्ष एवं विपक्ष के सहयोग से ही सदन को सुचारु रूप से चलाया जा सकता है। सदन महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा का मंच उपलब्ध कराता है। राज्यपाल के अभिभाषण पर विपक्ष और सत्ता पक्ष को अपनी बात खुलकर रखने का अवसर प्राप्त होगा। इस सत्र में देश के सबसे बड़े राज्य का बजट प्रस्तुत होगा। बजट पर चर्चा के दौरान प्रत्येक सदस्य को अपनी बात रखने का पर्याप्त अवसर मिलेगा। सरकार हर एक मुद्दे पर सार्थक चर्चा करने को तैयार है। विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित नेे कहा था कि विपक्ष अपना पक्ष, कार्यक्रम व सुझाव रख सकता है। उन्होंने दलीय नेताओं से अपना पक्ष सदन में शालीनता से रखने व राज्यपाल के अभिभाषण को शांतिपूर्ण तरीके से सुनने की परिपाटी बनाने की अपील की थी। जबकि विधानसभा में राज्यपाल आनंदीबेन पटेल के भाषण के दौरान विपक्ष ने सीएए एनआरसी और कानून व्यवस्था सहित विभिन्न मुद्दों पर विरोध प्रदर्शन किया। जाहिर है कि अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर सार्थक चर्चा में कठिनाई होगी। ऐसी स्थिति वस्तुतः सत्ता पक्ष के लिए सुविधाजनक होती है।