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‘त्वरित न्याय’ के रास्ते पर चल निकली यूपी पुलिस

उत्तर प्रदेश में अभियुक्तों को सज़ा दिलाने में पुलिस की त्वरित न्याय की नयी भूमिका देखने को मिल रही है। यानी जो मुकदमे वर्षों तक ठंडे बस्ते में पड़े रहते थे, अब उन पर महीने-दो महीने के भीतर फैसले आने लगे हैं जो इस बात का प्रमाण है कि पुलिस की सक्रियता बढ़ी है।

स्नेह मधुर

लखनऊ।

गुरुवार को कानपुर के स्पेशल पाक्सो कोर्ट के जज विजय राज सिसौदिया ने एक मासूम बालिका के साथ दुराचार करने वाले युवक को आजीवन कारावास की सज़ा सुनायी और साथ में एक लाख रुपये का आर्थिक दंड भी लगाया जिसका आधा हिस्सा पीड़िता के परिजनों को मिलेगा।

यह जजमेंट इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि बलात्कार की घटना होने से लेकर फैसला सुनाने तक की सारी विधिक प्रक्रिया में मात्र 75 दिन ही लगे। यह एक असंभव सी बात लगती थी अपने उत्तर प्रदेश के लिए लेकिन ऐसा हो ही गया।

न्याय प्रक्रिया की ढिलायी से लोगों का न्याय पर से विश्वास ही उठ चुका है। वह कहावत है न कि ‘का बरखा, जब कृषि सुखाने’? इस ‘अन्याय’ में पुलिस भी भागीदार रहती रही है। क्योंकि यह आम प्रचलित धारणा है कि मुलज़िम को सज़ा या तो इतने वर्षों बाद होती है जब उसकी स्मृतियां तक लुप्त हो जाती हैं या फिर पुलिस समुचित साक्ष्य तक एकत्रित नहीं कर पाती। विभिन्न वजहों से मुलज़िम संदेह का लाभ पाकर बरी हो जाता है क्योंकि कानून अंधा होता है। अभी हाल में आयी एक फ़िल्म में एक जज के मुंह से निकले संवाद काफी चर्चित हुए थे जिसमें जज स्वीकार करता है कि कानून अंधा होता है, जज नहीं…जज तो साक्ष्य का इंतज़ार ही करता रहा जाता है। साक्ष्य इकट्ठा करने की ज़िम्मेदारी पुलिस की होती है और सभी जानते हैं कि यहीं पर किन्हीं कारणों से पुलिस ‘खेल’ कर जाती है और न्याय नहीं मिल पाता है।

लेकिन पिछले कुछ समय से उत्तर प्रदेश में पुलिस की ‘पारंपरिक’ भूमिका बदलती सी दिख रही है। ज्यादा नहीं लेकिन छोटे-छोटे प्रयास दिखने लगे हैं।

कानपुर के बिठूर के मामले में 27 जुलाई को इसी वर्ष तीन साल की एक मासूम बच्ची के साथ, जो अपनी नानी के साथ खेत में मवेशी चराने गयी थी और वहां पर पड़ोसी का साला राधे श्याम उसे बहलाकर एक कोठरी में ले गया। बच्ची की चीख सुनकर नानी कोठरी में गयी तो बच्ची को खून से लथ-पथ पाया और राधेश्याम के पैंट को रक्त-रंजित।

बहरहाल, पुलिस को सूचना मिलने पर राधेश्याम को गिरफ़्तार कर लिया गया। यहीं पर पुलिस की नयी भूमिका शुरू होती है। उच्चाधिकारियों के निर्देश पर पुलिस ने गति बढ़ायी और 17 सितंबर को पोक्सो कोर्ट में चार्जशीट दाखिल कर दी। पुलिस की इस फुर्ती के बाद कोर्ट भी सक्रिय हो गयी। 12 गवाहों की पेशी भी हो गयी। यही नहीं, एक असंभव सा काम भी हो गया। राधेश्याम की खून-आलूदा पैंट का भी डीएनए टेस्ट हो गया। आमतौर पर डीएनए टेस्ट की रिपोर्ट आने में दो-दो साल तक लग जाते हैं लेकिन इस बारिश के मौसम में भी रिपोर्ट फटाफट आ गयी। अगर पांच दिन तक धूप निकलने का इंतज़ार न करना पड़ता तो रिपोर्ट और पहले भी आ सकती थी।

यानी ढाई महीने में ही अपराधी को सज़ा मिल ही गयी!पहले सुनते थे कि विदेशों में ही ऐसा संभव हो पाता था लेकिन अपने उत्तर प्रदेश में भी त्वरित न्याय के दृश्य सामने आने लगे हैं। निश्चित रूप से इसका श्रेय मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ और पुलिस महानिदेशक ओपी सिंह को दिया जाना चाहिए। ओपी सिंह ने 9 अगस्त को ही अपर पुलिस महानिदेशक महिला सम्मान को निर्देश दिये थे कि अति गभीर किस्म के 25 मामलों को संज्ञान में लेकर उनमें पुलिस वैज्ञानिक तरीके से साक्ष्य एकत्रित कर कोर्ट में रख कर उसकी प्रभावी पैरवी करे ताकि शीघ्र न्याय उपलब्ध कराया जा सके।

औरैया का मामला तो महीने भर में ही

सिर्फ बिठूर, कानपुर तक ही त्वरित न्याय की यह कवायद सीमित नहीं रही। औरैया के मामले में तो त्वरित न्याय महीने भर के भीतर मिल गया जिस पर विश्वास नहीं होता है और उंगली काटने का मन करता है। औरैया के बेला थाने में एक अगस्त को इसी वर्ष चार वर्षीय एक मासूम बालिका के साथ श्यामवीर नामक उसके रिश्तेदार ने ही दुराचार कर डाला। अगले ही दिन उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया और पुलिस ने फुर्ती दिखाते हुए 18 दिन के भीतर आरोप पत्र दाखिल कर दिया। यही नहीं, कोर्ट में एक-एक दिन में तीन-तीन गवाह पेश कर रिकॉर्ड बना दिया गया। इस तरह से अदालती कार्यवाही दस दिन में पूरी हो गयी और जज राजेश चौधरी ने मुलज़िम 40 वर्षीय श्यामवीर को आजन्म कारावास की सज़ा सुनाने के साथ ही क्षतिपूर्ति के रूप में दो लाख का जुर्माना भी लगा दिया।

इस वर्ष उत्तर प्रदेश में पाक्सो एक्ट के अंतर्गत 412 अपराधियों को सज़ा सुनाई जा चुकी है जिसमें से 52 मुल्जिमों को तो आजन्म कारावास की सज़ा दी गयी है।

मासूम बच्चों के साथ होने वाले इस तरह के अपराधों से उन्हें बचाने के लिए और अपराधियों को कड़ी सजा दिलाने के लिए ‘पाक्सो एक्ट’ बनाया गया जिसकी वजह से भी न्याय प्रक्रिया तेज हो पायी है।

क्या है पोक्सो क़ानून ?

POCSO एक्ट का पूरा नाम “The Protection Of Children From Sexual Offences Act” या प्रोटेक्शन आफ चिल्ड्रेन फ्राम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट है।

पोक्सो एक्ट-2012; को बच्चों के प्रति यौन उत्पीड़न और यौन शोषण और पोर्नोग्राफी जैसे जघन्य अपराधों को रोकने के लिए, महिला और बाल विकास मंत्रालय ने बनाया था। 

वर्ष 2012 में बनाये गये इस कानून के तहत अलग-अलग अपराध के लिए अलग-अलग सजा तय की गयी हैं।

पोक्सो के अंतर्गत बच्चों के खिलाफ यौन अपराध के 6118 मामले 2012 से 2016 के बीच दर्ज किये गये हैं। इसमें 85% मामले अभी भी कोर्ट में लंबित पड़े हुए है जबकि अपराधी को सजा मिलने की दर सिर्फ 2% है।

1. इसने भारतीय दंड संहिता, 1860 के अनुसार सहमति से सेक्स करने की उम्र को 16 वर्ष से बढाकर 18 वर्ष कर दिया है. इसका मतलब है कि-

(a) यदि कोई व्यक्ति (एक बच्चा सहित) किसी बच्चे के साथ उसकी सहमती या बिना सहमती के यौन कृत्य करता है तो उसको पोक्सो एक्ट के अनुसार सजा मिलनी ही है।

(b) यदि कोई पति या पत्नी 18 साल से कम उम्र के जीवनसाथी के साथ यौन कृत्य कराता है तो यह अपराध की श्रेणी में आता है और उस पर मुकदमा चलाया जा सकता है।

2. यह अधिनियम पूरे भारत पर लागू होता है और 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को यौन अपराधों के खिलाफ संरक्षण प्रदान करता है।

3. पोक्सो कनून के तहत सभी अपराधों की सुनवाई, एक विशेष न्यायालय द्वारा कैमरे के सामने बच्चे के माता पिता या जिन लोगों पर बच्चा भरोसा करता है, उनकी उपस्थिति में की कोशिश करनी चाहिए।

4. यदि अभियुक्त एक किशोर है, तो उसके ऊपर किशोर न्यायालय अधिनियम, 2000 (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) में मुकदमा चलाया जायेगा।

5.यदि पीड़ित बच्चा विकलांग है या मानसिक रूप से या शारीरिक रूप से बीमार है, तो विशेष अदालत को उसकी गवाही को रिकॉर्ड करने या किसी अन्य उद्येश्य के लिए अनुवादक, दुभाषिया या विशेष शिक्षक की सहायता लेनी चाहिए।

6. यदि अपराधी ने कुछ ऐसा अपराध किया है जो कि बाल अपराध कानून के अलावा अन्य कानून में भी अपराध है तो अपराधी को सजा उस कानून में तहत होगी जो कि सबसे सख्त हो।

7. इसमें खुद को निर्दोष साबित करने का दायित्व अभियुक्त (accused) पर होता है. इसमें झूठा आरोप लगाने, झूठी जानकारी देने तथा किसी की छवि को ख़राब करने के लिए सजा का प्रावधान भी है।

8. जो लोग यौन प्रयोजनों के लिए बच्चों का व्यापार (child trafficking) करते हैं उनके लिए भी सख्त सजा का प्रावधान है।

9. सर्वश्रेष्ठ अंतरराष्ट्रीय बाल संरक्षण मानकों के अनुरूप, इस अधिनियम में यह प्रावधान है कि यदि कोई व्यक्ति यह जनता है कि किसी बच्चे का यौन शोषण हुआ है तो उसके इसकी रिपोर्ट नजदीकी थाने में देनी चाहिए, यदि वो ऐसा नही करता है तो उसे छह महीने की कारावास और आर्थिक दंड लगाया जा सकता है।

10. यह अधिनियम बाल संरक्षक की जिम्मेदारी पुलिस को सौंपता है. इसमें पुलिस को बच्चे की देखभाल और संरक्षण के लिए तत्काल व्यवस्था बनाने की ज़िम्मेदारी दी जाती है. जैसे बच्चे के लिए आपातकालीन चिकित्सा उपचार प्राप्त करना और बच्चे को आश्रय गृह में रखना इत्यादि।

11. पुलिस की यह जिम्मेदारी बनती है कि मामले को 24 घंटे के अन्दर बाल कल्याण समिति (CWC) की निगरानी में लाये ताकि CWC बच्चे की सुरक्षा और संरक्षण के लिए जरूरी कदम उठा सके।

12. इस अधिनियम में बच्चे की मेडिकल जांच के लिए प्रावधान भी किए गए हैं, जो कि इस तरह की हो ताकि बच्चे के लिए कम से कम पीड़ादायक हो. मेडिकल जांच बच्चे के माता-पिता या किसी अन्य व्यक्ति की उपस्थिति में किया जाना चाहिए, जिस पर बच्चे का विश्वास हो, और बच्ची की मेडिकल जांच महिला चिकित्सक द्वारा ही की जानी चाहिए।

13. इस अधिनियम में इस बात का ध्यान रखा गया है कि न्यायिक व्यवस्था के द्वारा फिर से बच्चे के ऊपर ज़ुल्म न किये जाएँ. इस एक्ट में केस की सुनवाई एक स्पेशल अदालत द्वारा बंद कमरे में कैमरे के सामने दोस्ताना माहौल में किया जाने का प्रावधान है. यह दौरान बच्चे की पहचान गुप्त रखने की कोशिश की जानी चाहिए।

14. विशेष न्यायालय, उस बच्चे को दिए जाने वाली मुआवजे की राशि का निर्धारण कर सकता है, जिससे बच्चे के चिकित्सा उपचार और पुनर्वास की व्यवस्था की जा सके।

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