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यह भी जान लेना जरूरी है कि विदेशी मुसलमान भारत के बारे में क्या सोचते हैं ?

इस्लाम के विस्तार का काम भी अकबर भूला नहीं। उसे बताया गया कि इस्लाम बहुत कट्टर धर्म है इसलिए हिंदू इधर आकर्षित नहीं हो रहे हैं तो उसने इस्लाम को बहुत सरल करते हुए एक नया धर्म चलाया –‘दीन -ए- इलाही ‘ कि हिंदू इसे स्वीकार कर लेंगे किंतु हिंदुओं ने इसे नकार दिया।

राम कृपाल सिंह

पिछले दिनों इलाहाबाद हाईकोर्ट के माननीय जज ने गोहत्या के बारे में बहुत सख्त फैसला देते हुए कहा कि मुगल शासन में भी गोहत्या पर प्रतिबंध था। यह सही है कि बाबर, हुमायूं और अकबर के शासन काल में गौ हत्या पर प्रतिबंध था। लेकिन इसका यह अर्थ निकालना कि ये मुस्लिम शासक हिंदू संस्कृति के प्रेमी और गौ हत्या के विरोधी थे, निश्चय ही अपने को धोखा देना होगा।
बाबर ने 1526 में इब्राहिम लोदी को हराकर दिल्ली पर अधिकार किया था। उसके बाद वह कुछ ही वर्षो जीवित रहा और उसे अपने साम्राज्य को अधिक विस्तृत और मजबूत बनाने का मौका नहीं मिला।

मरने के कुछ समय पहले उसने अपने पुत्र हुमायूं को लिखा था कि तुम्हारा प्रथम उद्देश्य धर्म का विस्तार नहीं, साम्राज्य का विस्तार होना चाहिए। तुम्हारी जनसंख्या (मुस्लिम जनसंख्या) यहां बहुत कम है। बहुमत जनसंख्या को नाराज मत करना वरना इसी में उलझ कर रह जाओगे और साम्राज्य का विस्तार नहीं कर पाओगे। गोहत्या पर प्रतिबंध और हिंदुओं के धार्मिक कार्यक्रमों में हस्तक्षेप न करना इसी रणनीति का हिस्सा है।

‍‍ यहां यह भी जान लेना जरूरी है कि विदेशी मुसलमान भारत के बारे में क्या सोचते हैं ?

बाबर से ठीक 500 वर्ष पूर्व अरब यात्री अलबरूनी भारत आया था। अलबरूनी ने लिखा है कि दुनिया का कोई ‌ऐसा समुदाय नहीं जो अपने धर्म के प्रति हिंदुओं जितना उदार हो किंतु दुनिया का कोई दूसरा ऐसा समुदाय भी नहीं जो अपनी संस्कृति के प्रति हिन्दुओं जितना कट्टर हो। और यही कारण था कि बुद्धिमान शासक हिंदू संस्कृति पर हस्तक्षेप करने से बचते थे । बाबर की गोहत्या पर प्रतिबंध उसकी रणनीति थी वरना उसको भारत और भारतीयों से नफरत थी। उसके संस्मरणों पर आधारित पुस्तक ‘बाबरनामा ‘” में वह कहता है कि यह काले, गंदे, बदबूदार पसीना बहाते हिंदुस्तानी जब मेरे सामने आते हैं तो मुझे उबकाई आती है। उसने यह भी लिखा है कि मैं नहीं चाहता कि मरने के बाद मुझे हिंदुस्तान में दफनाया जाए। और उसकी इस इच्छा का पालन किया गया था।

हुमायूं को शासन करने का बहुत कम समय मिला और उसके बाद यही रणनीति अकबर ने अपनाई ।गोहत्या पर प्रतिबंध चालू रहा । हिंदुओं की निजी जिंदगी में भी उसका हस्तक्षेप न के बराबर था ।जनता शांत थी और अकबर अपने साम्राज्य का विस्तार करता रहा ।

अकबर के दरबार का प्रमुख दरबारी और उसका जीवनी लेखक अबुल फजल भी ‘आईने अकबरी ‘ में इस रणनीति का जिक्र करते हुए लिखता है कि अकबर की सबसे प्रबल महत्वाकांक्षा सुदूर दक्षिण तक अपने साम्राज्य के विस्तार की थी जो हो नहीं सका था।

लेकिन इस्लाम के विस्तार का काम भी अकबर भूला नहीं। उसे बताया गया कि इस्लाम बहुत कट्टर धर्म है इसलिए हिंदू इधर आकर्षित नहीं हो रहे हैं तो उसने इस्लाम को बहुत सरल करते हुए एक नया धर्म चलाया –‘दीन -ए- इलाही ‘ कि हिंदू इसे स्वीकार कर लेंगे किंतु हिंदुओं ने इसे नकार दिया।

इसी ‘दीन – ए -इलाही‘ के कारण वामपंथी और मुस्लिम इतिहासकार उसे उदार और सेकुलर बताते हुए ‘अकबर महान ‘ का दर्जा देते हैं जब कि ‘ दीन -ए- इलाही ‘उसकी रणनीति का हिस्सा था। दुर्भाग्य यह है कि स्कूलों की किताबों में आज भी अकबर महान ही पढ़ाया जाता है।

लेखक राम कृपाल सिंह कांग्रेस के पुराने कार्यकर्ता और पत्रकार हैं। लखनऊ में रहते हैं।

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