मोदी का भूटान का यह दूसरा और इस साल मई में दोबारा प्रधानमंत्री चुने जाने के बाद पहला दौरा था। जब वह पहली बार प्रधानमन्त्री बने थे तो भी सबसे पहले भूटान ही गये थे।
स्नेह मधुर/
भूटान से लौटते समय भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने भूटानवासियों की तरफ हाथ उठाकर कहा, ‘धन्यवाद भूटान ! यह यादगार दौरा हमेशा स्मृतियों में रहेगा। इस शानदार देश के लोगों से मुझे जो स्नेह मिला है उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता है। यहां कई ऐसे कार्यक्रम हुए जिनमें मुझे हिस्सा लेने का गौरव प्राप्त हुआ। इस यात्रा के परिणामस्वरूप द्विपक्षीय संबंध और प्रगाढ़ होंगे।’
दूसरी बार भारत के प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी शनिवार को भूटान पहुंचे थे। मोदी का भूटान का यह दूसरा और इस साल मई में दोबारा प्रधानमंत्री चुने जाने के बाद पहला दौरा था। जब वह पहली बार प्रधानमन्त्री बने थे तो भी सबसे पहले भूटान ही गये थे।
भूटान पहुँचने पर हवाई अड्डे से लेकर रास्ते में काफी दूर तक भूटानवासियों ने हाथ हिला-हिलाकर मोदी का अभूतपूर्व स्वागत ही नहीं किया था बल्कि भारत माता के जयकारे भी लगाये थे। थिंपू में प्रवास के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भूटान के प्रधानमंत्री लोटे शेरिंग के साथ शनिवार को व्यापक चर्चा की। इसके अलावा उन्होंने कई क्षेत्रों में द्विपक्षीय साझेदारी को आगे बढ़ाने के कदमों पर भी चर्चा की। मोदी की इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच दस क्षेत्रों में सहमति पत्रों पर हस्ताक्षर किये गये। इनमें अंतरिक्ष अनुसंधान, विमानन, सूचना प्रौद्योगिकी, ऊर्जा और शिक्षा के क्षेत्र शामिल हैं । भारत ने भूटान के साथ अपने रिश्ते को जल-सम्बन्ध से आगे बढाने के लिए रसोई गैस से लेकर अन्तरिक्ष प्रोद्योगिकी तक की कई क्षेत्रों में विभिन्न परियोजनाओं की प्रस्तुति भी की। भूटान के लिए रसोई गैस बहुत महत्वपूर्ण है जिसकी आपूर्ति 700 मीट्रिक टन प्रतिमाह से बढाकर एक हज़ार मीट्रिक टन करने का मोदी ने वायदा कर भूटानवासियों का दिल जीत लिया। प्रधानमंत्री मोदी ने शनिवार को भूटान नरेश जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक से मुलाकात की तथा भारत-भूटान की साझेदारी को आगे ले जाने वाले अनुकरणीय विचारों का आदान-प्रदान किया। बाद में, प्रधानमंत्री मोदी ने भूटान के चौथे नरेश जिग्मे सिंघे वांगचुक से मुलाकात की तथा भारत और भूटान के संबंधों को मजबूत करने के उनके निरंतर एवं अनोखे मार्गदर्शन के लिए उनकी सराहना की।
नरेंद्र मोदी ने वहां अपने संबोधन में कहा कि 130 करोड़ भारतीयों करे दिलों में भूटान एक विशेष स्थान रखता है। मेरे पिछले कार्यकाल के दौरान प्रधानमंत्री के रूप में मेरी पहली यात्रा लिए भूटान का चुनाव स्वाभाविक था, इस बार भी अपने दूसरे कार्यकाल के शुरू में ही भूटान आकर मैं बहुत खुश हूं।
मोदी द्वारा भूटान को अधिक महत्त्व देना स्वाभाविक प्रश्न पैदा करता है कि आख़िर भारत के लिए भूटान इतना महत्व क्यों रखता है? इसका जवाब भी बहुत ही सामान्य है कि भूटान, भारत का सबसे क़रीबी पड़ोसी होने के साथ ही दोस्त भी है। मुश्किलों में भी वह भी हमारे साथ हमेशा खड़ा रहता है-दोकलम विवाद के समय भूटान भारत के साथ ही खडा रहा था और अटल जी का विचार था कि पड़ोसियों से मधुर सम्बन्ध सबसे पहले बनाने चाहिए। भारत में एक अनौपचारिक परंपरा भी रही है कि भारतीय प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री, विदेश सचिव, सेना और रॉ प्रमुख की पहली विदेश यात्रा भूटान ही होती है। पी जयशंकर विदेश मंत्री बनने के बाद सबसे पहले भूटान ही गये थे । वर्तमान राजनैतिक परिस्थितियों में कश्मीर से 370 हटा लेने के बाद प्रधानमंत्री की भूटान की औपचारिक यात्रा दोनों देशों के बीच के रिश्ते को और बेहतर करेगी।
चीन के लिहाज से भी भारतीय प्रधानमंत्री की भूटान यात्रा भी ख़ास मायने रखती है। चीन की नज़र हमेश भूटान की तरफ रहती है और उसकी कोशिश हमेशा से रही है कि भूटान में उसका प्रभाव बढ़े और कूटनीतिक संबंध बेहतर हों। लेकिन भूटान का साफ रुख़ यह है कि वह भारत के साथ है। भारत के साथ तो भूटान के कूटनीतिक रिश्ते हैं भी जबकि चीन के साथ उसके इस तरह के रिश्ते तक नहीं है। इस बात को भी हमें नहीं भूलना चाहिए कि भूटान की नयी पीढ़ी चीन की तरफ आकर्षित हो रही है। चीन का लगातार दिया जाने वाला प्रलोभन उन्हें लुभाने लगा है ।पिछले एक दशक में चीन के उत्पादों की खपत वहां पर बढ़ने भी लगी है।
भूटान भारत के निवेश से बिजली का उत्पादन करता है और उसे भारत को बेचता भी है जो भूटान की जीडीपी का 14 प्रतिशत है। लेकिन अब भूटान में यह चर्चा होने लगी है कि यह सब कुछ भारत की शर्तों पर हो रहा है जिसमें बदलाव की जरूरत है। भूटान में बेरोजगारी बढ़ रही है और भारत द्वारा दिया गया ऋण भी बढ़ता जा रहा है। ऐसे में चीन का दबाव भी बढ़ने लगा है, वह भूटान के साथ कूटनीतिक और व्यापारिक रिश्ते बनाने के अवसर लगातार ढूंढता रहता है। ऐसे मौजूदा हालातों में भारत और भूटान के संबंधों को पुनः परिभाषित करने की जरूरत महसूस की जा रही थी ताकि मित्रता की गर्माहट बनी रहे। सही समय पर नये दोस्त बनाने और पुराने दोस्तों से सम्बन्ध प्रगाढ़ रखने की कला में मोदी का कोई जवाब भी नहीं है।