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गवर्नमेंट प्रेस के बजाए प्राइवेट से क्यों छपवाई जा रही हैं किताबें: हाईकोर्ट

प्रयागराज।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गवर्नमेंट प्रेस (राजकीय मुद्रणालय) होने के बावजूद किताबें प्राइवेट प्रेस से छपवाने के मामले को गंभीरता से लेते हुए जनहित याचिका कायम की है। हाईकोर्ट ने पूछा है कि किताबें राजकीय मुद्रणालय से न छपवाकर प्राइवेट प्रकाशन से महंगे दाम पर क्यों छपवाई जा रही हैं। जबकि सरकारी नियम के तहत किताबें राजकीय मुद्राणालय में ही छपनी चाहिए। पुस्तकों का प्रकाशन नहीं कराया जा रहा है।कोर्ट ने मुख्य सचिव को कानून की किताबों के सरकार द्वारा नियमित प्रकाशन, वितरण एवं बिक्री के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी के साथ व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है।

याचिका की सुनवाई 23 मार्च को होगी। यह आदेश मुख्य न्यायाधीश गोविन्द माथुर तथा न्यायमूर्ति समित गोपाल की खंडपीठ ने विनोद कुमार त्रिपाठी की विशेष अपील की सुनवाई के दौरान उठे सवालों पर जनहित याचिका कायम करते हुए दिया है। अपील की सुनवाई अलग से पांच मार्च को होगी।

बहस के दौरान दोनों पक्षों की तरफ से अधिक्ताओं द्वारा प्रस्तुत किताबों में उपबंधों में अंतर देख कर पीठ ने राजकीय मुद्रणालय प्रयागराज के निदेशक को तलब किया। उन्होंने बताया कि राजकीय मुद्रणालय कानूनी किताबें प्रकाशित कर रहा है और बिक्री के लिए काउंटर भी खोला है। किताबों की छपाई नियमित होने के बारे में संतोषजनक उत्तर नहीं मिला,जबकि सरकार से नियमित छपाई किए जाने के निर्देश है।

सरकारी किताबें उपलब्ध न होने के कारण अधिवक्ता प्राइवेट प्रकाशन से महंगी किताबें खरीद कर कोर्ट में पेश कर रहे हैं। इससे स्पष्ट है कि सरकार ने कानूनी पुस्तकों की छपाई प्राइवेट कंपनियों को सौंप दी है। पीठ ने सरकार को सरकारी प्रेस से नियमित प्रकाशन करने का निर्देश देते हुए ब्यौरा पेश करने के लिए कहा है।

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