पिछले सप्ताह गोरखपुर से उप मंडलायुक्त ने गोसदन आकर व्यापक जाँच की और हर प्रकार से असंतुष्ट रहे। उनकी रिपोर्ट पर मंडलायुक्त जयंत नारलीकर ने दो दिन पहले यहाँ आकर खुद भी जाँच की।
नये जिलाधिकारी के रूप में प्रयागराज के नगर आयुक्त डॉ उज्ज्वल कुमार की तैनाती की गयी है। वह उत्तर प्रदेश के सूचना निदेशक भी रह चुके हैं। जिलाधिकारी के रूप में डॉ उज्ज्वल कुमार की यह पहली नियुक्ति है। प्रयागराज में उन्होंने महाकुम्भ को कुशलतापूर्वक सम्पन्न कराया था जिसकी खूब तारीफ हुई थी। यह तो तय है कि डॉक्टर उज्ज्वल कुमार के आने से महराजगंज अब निश्चित रूप से साफ-सुथरा दिखने लगेगा।
वरिष्ठ पत्रकार के.एम. अग्रवाल
महराजगंज।
उत्तर प्रदेश के महराजगंज जनपद में स्थित मधवलिया गोसदन में बड़े पैमाने पर गोवंशीय पशुओं के गायब पाये जाने तथा आर्थिक सहित अन्य गंभीर कनियमितताओं के आरोप में जिलाधिकारी अमरनाथ उपाध्याय सहित चार अन्य अधिकारियों को शासन ने आज निलंबित कर दिया।फिलहाल प्रशासनिक स्तर पर अभी आगे जाँच होगी।
असल मेें सिसवा विधानसभा के विधायक प्रेम सागर पटेल ने कुछ दिनों पूर्व गोसदन में बड़े पैमाने पर धन के दुरुपयोग एवं अनियमितता का आरोप लगाते हुए मुख्यमंत्री को पत्र लिख कर जाँच की माँग की थी। पिछले सप्ताह गोरखपुर से उप मंडलायुक्त ने गोसदन आकर व्यापक जाँच की और हर प्रकार से असंतुष्ट रहे। उनकी रिपोर्ट पर मंडलायुक्त जयंत नारलीकर ने दो दिन पहले यहाँ आकर खुद भी जाँच की। समझा जाता है कि मंडलायुक्त की रिपोर्ट पर शासन ने कारवाई कर दी।
निलंबित जिलाधिकारी अमरनाथ उपाध्याय
जिलाधिकारी अमरनाथ उपाध्याय के साथ गोसदन के प्रबंधक निचलौल के परगनाधिकारी सत्यम मिश्रा, निवर्तमान परगनाधिकारी देवेन्द्र कुमार, मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डा. राजीव उपाध्याय और उप मुख्य पशु चिकिस्तधिकारी डा. वी.के. मौर्य को निलम्बित किया गया है। इनके विरुद्ध अनुशासनात्मक जाँच भी बैठा दी गयी है।
जाँच रिपोर्ट में मुख्यरूप से पाया गया है कि गोसदन के रजिस्टर में गोवंशीय पशुओं की संख्या 2500 दिखायीी गयी है, जबकि मौके पर सिर्फ 954 पशु ही पाये गये।इसी प्रकार गोसदन की 500 एकड़ भूमि में से लगभग 328 एकड़ भूमि मनमाने रूप से नियम विरुद्ध कुछ किसानों तथा अन्य लोगों को हुण्डा पर दे दिये गये थे।
इसी प्रकार शासन से अथवा अन्य श्रोतों से प्राप्त धन का लेखा-जोखा गड़बड़ था। पहली बार 1957 में राज्य सरकार ने राज्यपाल की अनुमति से शासनादेश जारी किया कि हर जिले में लावारिस गोवंशीय पशुओं के लिए गोसदन स्थापित किये जाये। 1969 में शासन ने मधवलिया जंगल की 500 एकड़ भूमि को वन विभाग से पशुपालन विभाग को हस्तांतरित कर दिया।
इसके बाद लम्बे समय तक गोसदन की पूर्ण उपेक्षा होती रही। 1997 में समाजसेवी एवं वनस्पति विज्ञान से परास्नातक विमल कुमार पांडेय ने इस दिशा में रुचि ली और तत्कालीन मंडलायुक्त राजीव गुप्ता तथा जिलाधिकारी आलोक टण्डन से मुलाकात के बाद गोसदन की पुरानी फाइलों को निकलवाया। इसके बाद मंडलायुक्त श्री गुप्ता और जिलाधिकारी श्री टण्डन ने गोसदन को सुधारने की दिशा में काफी काम किया।विमल कुमार पाण्डेय गोसदन के प्रबंधक बनाये गये।
एक प्रबंध समिति भी बनी, जिसके अध्यक्ष जिलाधिकारी नामित हुए। समिति में चार प्रमुख नागरिकों को सदस्य नामित किया गया। धीरे-धीरे गोसदन की स्थिति में काफी सुधार हुआ। बाद में अध्यक्ष (जिलाधिकारियों)के रुचि न लेने के कारण गोसदन की स्थिति काफी खराब हो गयी। इससे दु:खी होकर चारो नागरिक सदस्यों ने समिति से इस्तीफा दे दिया।
अभी लगभग दो वर्ष पूर्व एक विधायक के दवाब में आकर जिलाधिकारी ने विमल पाण्डेय को हटाकर विधायक के एक व्यक्ति को गोसदन का प्रबंधक बना दिया। इन्हें भी लगभग एक वर्ष पूर्व हटा दिया गया और निचलौल के परगनाधिकारी को ही प्रबंधक का अतिरिक्त कार्यभार दे दिया गया।