वकीलों ने कहा कि वर्तमान युग में निरंतर इंटरनेट सेवाओं का अधिकार जीने के अधिकार का विस्तार है और इसमें बाधा भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।
इंटरनेट सेवाओं को क्यों बंद कर दिया गया?
प्रयागराज।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश में इंटरनेट बंद के मुद्दे पर स्वत: संज्ञान लेते हुए जनहित याचिका दर्ज की है। सीएए के विरोध प्रदर्शनों पर धारा 144 सीआरपीसी के तहत जारी राज्यव्यापी प्रतिबंधात्मक आदेशों के बाद यूपी के कई हिस्सों में इंटरनेट सेवाओं को बंद कर दिया गया। मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति विवेक वर्मा की खंडपीठ ने 20 दिसंबर को रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि वह “राज्य प्राधिकरणों द्वारा इंटरनेट सेवाओं के बंद होने के संदर्भ” के नाम से एक जनहित याचिका दायर करे। मामले को ३ जनवरी को सूचीबद्ध करने का आदेश दिया गया था। इस पर 6 जनवरी को विचार किया जाएगा। इस मामले में यूपी सरकार को नोटिस दिया गया है।
इससे पहले वरिष्ठ अधिवक्ता रवि किरण जैन, अनुराग खन्ना और इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष राकेश पांडे के नेतृत्व में वकीलों के एक समूह ने मुख्य न्यायाधीश के समक्ष इंटरनेट बंद होने के कारण वकीलों के साथ-साथ जनता की समस्याओं का उल्लेख किया था। वकीलों के इस समूह ने मुख्य न्यायाधीश को बताया कि इंटरनेट शटडाउन ने न्यायिक प्रणाली को प्रभावित किया है। वकीलों ने बताया कि केस सूची का प्रकाशन और वितरण, आदेशों की अपलोडिंग और डाउनलोड प्रक्रिया और कई अन्य गतिविधियां इंटरनेट सेवाओं पर निर्भर हैं। इंटरनेट बंद होने से न्यायिक प्रणाली ठप्प हो गई है।
वकीलों ने बताया कि न्यायिक प्रणाली के अलावा, बैंकिंग गतिविधियां, प्रशासनिक गतिविधियां, शैक्षिक गतिविधियां, चिकित्सा गतिविधियां, रेलवे द्वारा आवागमन, एयरवेज इंटरनेट बंद होने के कारण बाधित हो गए हैं। वकीलों ने कहा कि वर्तमान युग में निरंतर इंटरनेट सेवाओं का अधिकार जीने का अधिकार का विस्तार है और इसमें बाधा भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।
गौरतलब है कि पिछले महीने, गुवाहटी हाईकोर्ट ने मोबाइल इंटरनेट सेवाओं की बहाली का आदेश दिया था, जिन्हें सीएए के विरोध प्रदर्शनों के मद्देनजर बंद कर दिया गया था। दिल्ली हाईएकोर्ट ने पिछले महीने सीएए विरोध प्रदर्शन के दौरान इंटरनेट बंद करने के लिए पुलिस द्वारा जारी आदेशों के खिलाफ दायर जनहित याचिका को खारिज कर दिया था।