Home / Slider / यह लोकतांत्रिक मूल्यों के क्षरण का समय है- डॉ राकेश

यह लोकतांत्रिक मूल्यों के क्षरण का समय है- डॉ राकेश

हाजीपुर,वैशाली में,बिहार विश्वविद्यालय असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ राकेश रंजन के आवास पर एक साहित्यिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया।इस कार्यक्रम की अध्यक्षता शहर के जाने-माने नाट्य-निर्देशक व अभिनेता क्षितिज प्रकाश ने।
इस कार्यक्रम के मुख्यतः तीन सत्र आयोजित हुए,जिसके पहले सत्र में ‘कविता और वर्तमान समय’ पर डॉ राकेश रंजन का व्याख्यान हुआ।इस विषय पर बोलते हुए डॉ राकेश ने कहा कि यह समय हमारे लिए अत्यंत विनाशकारी व लोकतान्त्रिक मूल्यों के क्षरण का समय है।वर्तमान सरकार की नीतियों से आम जनता त्रस्त है और हमारा संविधान खतरे में है।दरअसल सच तो यह है कि जिस प्रकार आज के समय में धर्मान्धता बढ़ी है, शायद आजकल के लोग नहीं जानते कि हिन्दू-मुस्लिम की ‘गंगा-जमुना संस्कृति’ ने ही इस देश को बनाया है।इस क्रम में डॉ राकेश ने अमीर खुसरो से लेकर कबीर,जायसी, तुलसी,नामवर सिंह, हजारी प्रसाद द्विवेदी इत्यादि कवियों व विद्वानों को रेखांकित किया।
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में हिंदी के बहुचर्चित कवि रघुवीर सहाय की लगभग दर्जनों कविताओं का पाठ किया गया। पाठ करने वालों में सर्वप्रथम शिक्षक व कवि प्रकाश गौतम ने उनकी दो कविताओं ‘रामदास’ व ‘हँसो,हँसो,जल्दी हँसो’ का बेहतरीन पाठ किया।इसके बाद अनाम विश्वजीत ने ‘सुकवि की मुश्किल,अधिनायक इत्यादि कविताओं का सस्वर पाठ किया।इस सत्र के अंत में कवि संजय शाण्डिल्य ने रघुवीर सहाय की लगभग आधा दर्जन कविताओं का पाठ कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।इसके बाद कार्यक्रम के आखिरी व तीसरे सत्र का आयोजन किया गया, जिसमें आमन्त्रित कवियों ने अपनी स्वरचित कविताओं का पाठ किया।इस क्रम में सर्वप्रथम प्रखर दलित कवि अरविन्द पासवान ने अपनी ‘फातिमा’ शीर्षक कविता पढ़कर माहौल को मार्मिक बना दिया।उन्होंने पढ़ा: ‘और इस तरह/फूल खिलने के इस मौसम में उसके अरमान/शोलों की लपटों में जलकर खाक हो गए।’ फिर कवि प्रकाश गौतम ने अपनी कविता ‘चीख’ और ‘भेड़िए’ पढ़ीं।ये कविताएँ समकालीन विषय पर केंद्रित थीं।उन्होंने पढ़ा: ‘पहले जवान गरम गोश्त/खाने वाले/अब बच्चों को भी/चट कर जाते हैं।’ इस काव्य पाठ को आगे बढ़ाते हुए अनाम विश्वजीत ने अपनी एक लंबी कविता का पाठ किया, जिसका शीर्षक था : ‘इस मोड़ पर विदा नहीं कह सकता।’ पुनः कार्यक्रम के वक़्ता, कवि राकेश रंजन ने अपनी दो कविताओं ‘सनहा’ और ‘एक लम्बा नारा’ पढ़कर कार्यक्रम की गरिमा बढ़ा दी।इन कविताओं में उन्होंने वर्तमान स्थिति पर गहरा चोट किया।उन्होंने पढ़ा: ‘बूचड़खाने में बदलता मेरा देश/जहाँ ठीहे ही ठीहे/खून ही खून/लोथड़े ही लोथड़े।’
सत्र के अन्त में एक बार फिर कवि संजय शाण्डिल्य ने अपनी कविताओं से समां बांध दिया।उन्होंने ‘आग्रह’, ‘आदमी’, व ‘तुम्हें नहीं लगता’ शीर्षक कविताएँ पढ़ीं,जिन पर श्रोताओं ने जमकर दाद दी।अंत में अध्यक्ष क्षितिज प्रकाश ने अपने वक्तव्य में कार्यक्रम को बेहद सार्थक बताते हुए कहा कि ऐसे आयोजन इस समय की अनिवार्य माँग हैं और इन्हें लगातार आयोजित करने की जरूरत है।उनकी इस बात का सभी उपस्थित लोगों ने एकस्वर में समर्थन किया।इस अवसर पर शिक्षिका माधुरी कुमारी,विकास कुमार,आदर्श नितिन,पारिजात सहित अन्य कई लोग उपस्थित रहे।इस अवसर की विशेषता यह रही कि बालकवि पारिजात ने भी अपनी दो सुन्दर कविताओं का पाठ किया, जिसे श्रोताओं द्वारा ख़ूब पसन्द किया गया।आखिर में संयोजक अनाम विश्वजीत ने इसी रुपरेखा के अनुरूप आगे भी कार्यक्रम आयोजित करने व सभी लोगों से खुले मन से सहयोग करने की अपील की।इस कार्यक्रम के सफल आयोजन के लिए भी आदर्श नितिन व राकेश रंजन का विशेष आभार प्रकट किया।इस कार्यक्रम का संचालन प्रखर दलित कवि अरविन्द पासवान ने किया।

Check Also

“ये सदन लोकतंत्र की ताकत है”: मोदी

TEXT OF PM’S ADDRESS AT THE SPECIAL SESSION OF PARLIAMENT माननीय अध्‍यक्ष जी, देश की ...