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प्रीति हर्ष की कविताएं: ‘जिंदगी पानी के रंग सी’

प्रीति हर्ष

जिंदगी पानी के रंग सी

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आज फिर सुबह

खिड़की के बाहर देखती

भागती दौड़ती जिंदगी

हर कोई अपनी ही धुन में और मैं ?

मेरे पास समय ही समय


यादों में खोई अचानक
पहुंच गई वहाँ
जब इन्हीं हाथों से
कागज़ पर उकेरे जाते
काले, सफेद, रंगीन चित्र उंगलियाँ ना जाने कैसे, बिना सोचे ही
रंगो से खेलने लगतीं
और बार-बार बनता
एक सुंदर चित्र
जिसे बनाने के लिए
पानी में हर बार
लाल ,नीले ,पीले ,
गहरे -हल्के रंगों का समायोजन होता
पानी कभी दो बूंद अधिक
और कभी दो बूंद कम
पर इस कम और अधिक का समायोजन
नई तस्वीर देता
मेरी जिंदगी भी ठीक वैसी
पानी के रंग सी
हर दफा मैंने चटक रंग डाले
हर बार तस्वीर भी बनी
तो फिर आज हाथ खाली क्यूँ ,
जिंदगी में नीले रंग ही क्यूँ
संभावना है अभी भी,
उठाया उन सादे कागजों को,
रंगों की वह खाली ट्रे, जिनमें सारे रंगों के खाने खाली थे ,
उनमें सारे इंद्रधनुषी ताजे रंग डाले ,
उठाई तूलिका,
गुनगुनाती कुछ बनाने लगी ,
और रंगों के इस विस्फोट से
अमलतास के खिलते पुष्प उकेरा मैंने,
वाह !जिंदगी रंगो के बिना अधूरी है,
नीले रंग जाने कब दब गए,
पीले रंगों से फूल खिले
और
कुछ नीले रंगों पर पीले रंगों ने हरे रंगों की छटा बिखेरी,
और बना एक सुंदर चित्र
जिंदगी का हाल भी
इन पानी के रंगो सा है ,
हर बार उनमें
खुशनुमा रँग भरने पड़ते हैं।

हाँ, महात्मा बुद्ध बनूँगा मैं

समेत लाया हूं मैं

अपने कांधों पर

अपने छोटे से ज्ञान को
एक रोशनी सी नजर आती है मुझे
क्या यह वही बोधि वृक्ष है
जिसके नीचे बैठकर
महात्मा बुद्ध की तरह ज्ञान प्राप्त करूंगा
जो पशु पक्षी प्राणियों मनुष्यों में
ज्ञान के प्रकाश को भर दे
जीवन को ब्रह्म सत्य की ओर ले चले
ज्ञान से सब का जीवन प्रकाशित कर दे


बढ़ा दिए हैं कदम मैंने
उनके पद चिन्हों पर चलने के लिए
जो मुझे एक मनुष्य बनने में मदद दे
सत्यके मार्ग पर चलते हुए
मनुष्यता के धर्म का पुरोधा बनूंगा मैं
क्योंकि उनके ज्ञान को भुला दिया है हमने ,मूर्तियों में उन्हें समेट कर रख दिया ,भुला दिया उनके सिद्धांतों को,
हाँ, महात्मा बुद्ध बनूंगा मैं।

चुनाव है

चुनाव की दुंदुभी बज चुकी,
हर बार की तरह सैकड़ों चुनावी वादे ,
नेता को सिर्फ कुर्सी की दरकार ,
भले सत्ता जहर हो,
पर हो अपनी ही सरकार, वोट के बदले नोट ,
या नोट के बदले वोट ,
यहां सब चलता है,
क्योंकि यहां सब कुछ बिकाऊ है ,
सब ने कीमत की तख्ती लगा रखी है,
यह चुनावी नहीं पूरे पाँच साल की तैयारी है,


कुछ नए,

कुछ पीढ़ियों से इस व्यवसाय में,

जमानत पर घूमते नेता भी,
भ्रष्टाचार ,गरीबी दूर करने का वादा करते,
बड़े-बड़े नेता ,बड़ा उनका किरदार,
शेर की खाल ओढ़े रंगा सियार ,
खुलेआम पैसे देने के वादे करते ,
गरीब मुफ्त वादों को सुनते ,
टैक्स देने वाले सुन कर हैरान ,
धर्म के नाम पर राजनीति की रोटियां सेंकते ,
दुश्मन को गले लगाते,
इन सब में देश कहाँ है ,
यह सोचने वाले गिनती भर के

चुनाव है!!

 

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