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“मेरे पिता सूरज प्रसाद सक्सेना”: कोरोना काल में समाज के लिये बने मिसाल : रचना सक्सेना

समाज और नई पीढ़ी को सही दिशा दिखाने एवं मार्गदर्शन में हमारे बुजुर्गों का विशेष स्थान है। समाज के नैतिक मूल्य और संस्कृति तभी तक जीवित है जब तक हमारे समाज में हमारे बुजुर्गों के अनुभवों और विचारों का सम्मान है जो एक देश, एक समाज और एक परिवार को समृद्ध बनाने में सदैव सहायक रहा है।

आज हम आपका परिचय बहराइच जिले के ऐसे सम्मानित वरिष्ठ नागरिक से कराने जा रहे है जो किसी परिचय के मोहताज नही है। आप है बहराइच जिले के निवासी, गांधी इण्टर कालेज के अग्रेजी के पूर्व प्रवक्ता तथा पूर्व प्रधानाचार्य सूरज प्रसाद सक्सेना। जिन्होंने अपना सारा जीवन शिक्षण कार्य में व्यतीत करते हुऐ सादा और सरल जीवन जिया है।

आप इस समय 95 वर्ष पूरे कर चुकें है किन्तु वह अपने व्यक्तिगत कार्यो के लिये अपने परिवार पर आज भी निर्भर नही है। जीवन के प्रति उनकी सकारात्मक सोच ने ही इस कोरोना काल में उन्हे अवसाद की स्थिति में पहुचाने के बजाय कोरोना जैसी जानलेवा महामारी से लड़ने की हिम्मत पैदा की है। आप बहुमुखी प्रतिभा और प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी तो है ही, साथ ही आज कोरोना काल में समाज के लिये एक ऐसे मिसाल बने हुऐ है *जिन्होनें इस पूरे कोरोना काल में कोरोना महामारी के प्रथम दिन से लेकर आज तक की विश्व एवं भारत के संदर्भ मे हस्तलिखित करोना रिपोर्ट सुन्दर शब्दों से संजोई है जो कि अवश्य विश्व रिकॉर्ड साबित होगा और आज भी रोज़ लिखिना ज़ारी है जोकि एक बहुत बड़ी बात है।

जहाँ हमारी आँख और कान पचास की उम्र में धोखा देने लगतै है और हम लिखने पढ़ने से कतराने लगते है वहीं आप उम्र के इस पड़ाव पर इस तरह कें कार्य को बहुत आसानी से और उत्साह के साथ कर रहे है। जबकि उनकी आंखे धुधंला चुकी है और कानों से भी वह ऊँचा सुनते है मुख्य बात यह है कि आज भी उनमें जीने का जज्बा है वह अपने अनुभवों से समाज को सही दिशा दे रहे है। उनके लिए जिन्दगी बोझ नही बल्कि एक ऐसा मंच है जहाँ हम सभी नित्य प्रतिदिन अपनी भूमिका के मंचन द्वारा कुछ नया सीखते है और सिखाते है। साथ ही अपने अच्छे बुरे अनुभवों से समाज को शिक्षित भी करते है। आप एक कर्मठ इंसान है इस कोरोना जंग के संबंध में जब उनसे बातचीत की गयी तो उन्होंने बताया कि किसी भी बिमारी अथवा महामारी से लड़ने के लिये सबसे जरूरी है अपने स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना तथा किसी बिमारी एवं महामारी के संकमणों से बचने के लिये बताऐ गयें नियमों का कठोरता से पालन करना। आपने इस महामारी का बहुत साहस के साथ सामना तो किया ही है साथ ही साथ आज वह सभी के लिये एक प्रेरणा की मूर्ति भी बने हुऐ है उनका कहना है कि किसी भी महामारी से लड़ना कोई कठिन काम नही है सिर्फ उसके बचाव के तरीकों को अपने जीवन में उतारने की आवश्यकता है। एक लापरवाही हम सभी के लिये जानलेवा हो सकती है।


बहुमुखी प्रतिभा के धनी, हमारे प्रेरणास्रोत, अपने जिले के सम्मानित नागरिक आप कोई और नही हमारे पिता है। मैं आपके जज्बे को बारम्बार नमन करती हूँ।

रचना सक्सेना

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