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“हमारे जमाने में बोर्ड के रिजल्ट और फिर परसादी!! “: राहुल द्विवेदी

हमारे जमाने के रिजल्ट: राहुल द्विवेदी
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इधर एक दिन से दसवीं और बारहवीं के रिजल्ट को लेकर कई पोस्ट दिखे । सबने यादों का पिटारा खोल दिया । फिर मैं क्यों पीछे रहूं ? शास्त्रों में भी तो कहा गया है “महाजना: येन गतां सपन्था”।

हमारे जमाने में दो नहीं तीन बोर्ड के एग्जाम्स होते थे । दर्जा आठ के लिए जनपदीय बोर्ड होता था । सबसे बड़ी समस्या अपने पास फेल की कम होती थी , समस्या किसी जोड़ीदार के, जो कि आपके किसी मुहल्ले के खास परिचित का बेटा/बेटी होता था उसके अधिक नंबर पा जाने से होती थी ।इसे हमारे पीढ़ी के लोग ज्यादा बेहतर समझते होंगे । उस जमाने में न कोई बेस्ट ऑफ़ लक बोलता न ही कोई एग्जाम काउंसलर होता । दुनिया जहान के सारे टेंशन खुद अपने कंधे पर उठाने होते थे ।

तो साहेबान हुआ यह कि दर्जा आठ का रिजल्ट आया । मैं अपने स्कूल के तथाकथित मेधावी छात्रों में था और यहां यह स्वीकारने में भी कोई गुरेज नहीं कि प्रत्येक निम्न मध्यम वर्गीय परिवार की कहानी की तरह अपने घर में “अंडर स्टीमेटेड”। अपने विद्यामंदिर स्कूल में आठवीं में यदि सही याद आ रहा तो मेरी तीसरी या चौथी पोजिशन थी । मैं स्कूल से रिजल्ट लेकर घर आया । नंबर देखने के बाद माताश्री बहुत गुस्से में बोली सारे मोहल्ले में नाक कटा दी । और फिर परसादी मिलने लगी। परसादी की भी कहानी यह कि जो “पनारवा घिसा हुआ रबड़ वाला चप्पल ” होता था वही समझावन बुझावन हुआ करता था। चुनाँचे दो चार रसीद हो गए ।

मैं अकबकाया इस अचानक आक्रमण से । समझ ही नहीं आया कि कौन सी “शिमला संधि” तोड़ गैर कानूनी काम किया है कि तत्काल ही उसका न्याय मिल गया । खैर , परसादी के बाद पता चला कि फलाने के लड़के से तुम्हारा दो नंबर कम है । मैं कई दिनों तक उन फलाने चचा के घर की तरफ से जाना ही छोड़ दिया क्योंकि मेरा नंबर पूछा जाना बिल्कुल तय था ..।

दूसरा किस्सा हाई स्कूल का है ।जो अपने आप में कालजयी है। उस दिन सुबह से हुदूर हुदुर हो रही थी । शाम को चार बजे रिजल्ट आया । बाबू जी ऑफिस को निकल चुके थे । अड़ोसी –पड़ोसी जान को पड़े थे रिजल्ट को लेकर । उस जमाने में एक दो दुकानदार रिजल्ट लेकर आते थे । एक रुपया थर्ड क्लास , दो रुपिया सेकंड क्लास का और पांच रुपया फर्स्ट क्लास का रेट था । बगल के एक भाई साब साथ में गए ,रिजल्ट की विश्वसनीयता की जांच के लिए । खैर दुकान की भीड़ में मैने किसी तरह झूठ बोल दूसरे नंबर की जगह अपना नंबर देख लिया । जो नंबर मैने बोला था वह फेल हो गया था ।

लगे हाथ बताते चले कि आज की तरह रिजल्ट नहीं होते थे । कुल जमा 15 प्रतिशत रिजल्ट आया था यूपी बोर्ड का । मैने अपने पांच रुपए को बचाने की जुगत में यह ट्रिक अपनाई थी । दुकानदार मुझे सांत्वना दे रहा था । मैं मुस्करा रहा था । भाई साब को संदेह हो गया जब मैने उनसे कहा चलिए फर्स्ट क्लास है । उन्होंने कहा नहीं मैं अपनी आंख से देखूंगा । बड़े दुख के साथ बताना पड़ रहा कि मेरा पांच रुपया शहीद हो गया । खैर ! घर पहुंचे तो देखा, घर में भीड़ लगी है । लोग मिठाई खा रहे । पैर छुवाई की रस्म शुरू हुई । इतने में पिता जी ने बताया कि मुरलीधर जी के कारण तुम बच गए ।

हुआ यह कि रास्ते में कहीं पिता जी ने रिजल्ट देख लिया । मेरे रोल नंबर के आगे “F”लिखा था । दुकानदार ज्यादा समझदार था , उसने रिजल्ट देखने के पहले ही पांच रुपए सबसे रखवा लिए थे । अब बाबू जी मेरी मेधा को लेकर इतने विश्वास में थे कि उन्होंने उस F को फेल समझा। उनका गुस्सा दुगुना हो गया था ,उनके हिसाब से एक तो मैं फेल ऊपर से पांच रुपए भी गए। वह तो भला हो मुरलीधर चचा का । उनका बेटा सेकंड डिवीजन पास हुआ था , वह मिठाई लेकर जा रहे थे । पिता जी को मिठाई खिला कर मेरे रिजल्ट के बारे में पूछे । पिताजी गुस्से में कहे जा रहे पूजा करने । फेल हो गए हैं । चचा बोले अरे, रोल नंबर नहीं है क्या । बाबूजी बोले वह तो है पर उसके आगे F लिखा है।

F माने फेल। चचा बोले अरे भैया मिठाई खिलाइए , बेटा फर्स्ट क्लास पास हुआ है । जो फेल होते हैं ,उनका रोल नंबर नहीं छपता । ( बेचारे चचा न रहे होते उस दिन तो मैं पक्का अष्टावक्र तो हो ही गया होता)। मैं “विथ ऑनर्स ” यानी 75 प्रतिशत से ऊपर नंबर लाया था ,अपने कॉलेज में शायद तीसरी पोजिशन थी । अब समस्या यह थी कि मेरे कॉलेज से मेरा साथी मेरिट में आया था । माताश्री के लिए यह दुखद था कि मैं मेरिट में नहीं आया । मैने उनसे पूछा फलाने चचा के लड़के का क्या हुआ ? तो माताजी चुप!(वही लड़का जो आठवीं में मुझसे दो नंबर ज्यादा पाया था , हाई स्कूल में सेकंड क्लास आए थे)।

तीसरा किस्सा बारहवीं का है । उस दिन जब रिजल्ट आया तो घर में कोई खास माहौल नहीं था । बड़े चाचा थे वह शायद इलाहाबाद के बीपी सी एल में इंजीनियरिंग के बाद इंटर्नशिप कर रहे थे या आए हुए थे याद नहीं। बाबू जी की कंपनी उस समय हांफ रही थी । रोज धरना प्रदर्शन होता था । बाबूजी वहीं गए थे । घर में और कोई नहीं था । मां और बहने गांव पर थीं । शाम को चाचा बोले रिजल्ट तो देख आओ । मैने कहा कि फालतू पैसा लगेगा । उन्होंने दस रुपिया दिया । कहे हद है –जाओ।

मैं दुकान पर गया –चोर निगाह से अपना रिजल्ट देख लिया । रिजल्ट देखने के बाद मैं चौंक गया । मेरे रोल नंबर के आगे “H”लिखा था । यह नई समस्या थी । मैने दुकानदार से कहा यार यह H क्या है? उसने कहा 15 रुपिया निकालो । तुम्हारा ऑनर्स आया है (यानी 75 प्रतिशत के ऊपर) । मैं वहां से भागा, दुकान दार चिल्लाते हुए मेरे पीछे । मैं भागते भागते घर पहुंचा । चाचा बोले हाफ क्यों रहे । मैं पूरी बात बताया । वह हंसने लगे । फिर कहे अबे पैर तो छुओ….। फिर समोसा, इमरती की पार्टी हुई।

आज वे सिर्फ एक कागज के टुकड़े हैं। पता नहीं कहां रखे हुए….।

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