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“हिंदी पत्रकारि‍ता दिवस”: पता नहीं हिंदी के पत्रकार पढ़ने लिखने की प्रवृत्ति कब विकसित करेंगे?

वरिष्ठ पत्रकार रामधनी द्विवेदी

30 मई 

हिंदी पत्रकारों का पठन पाठन

आज हिंदी पत्रकारि‍ता दिवस है। लोग सोशल मीडिया पर एक दूसरे को खूब बधाइयां दे रहे हैं। लेकिन हिंदी पत्रकारिता की क्‍या स्थिति है, इसे देख कर दुख होता है। पिछले सप्‍ताह देश के प्रसिद्ध विज्ञान लेखक शुकदेव प्रसाद का देहांत हुआ। मैंने यह देखने के लिए हिंदी के अखबारों ने उनके साथ क्‍या व्‍यवहार किया, इलाहाबाद के अखबारों में छपी उनके देहांत की खबरें वहां के अपने एक शुभेच्‍छु से वाट्सएप पर मंगाईं।

कुछ अखबारों ने उनका सही नाम तक नहीं लिखा। एक अखबार ने अपने डाक संस्‍करण में गलत नाम लिखा लेकिन बाद में उसे ठीक कर लिया। एक स्‍वनामधन्‍य अखबार ने तो उन्‍हें सुखदेव के साथ ही नारायण भी लिख दिया। कुछ अखबारों ने उनके साथ रहने वाले डाक्‍टर अभिषेक को उनका पुत्र लिख दिया जब कि शुकदेव जी ने शादी नहीं की थी और वह अकेले रहते थे।

इलाहाबाद के अलावा यूपी के अन्‍य संस्‍करणों में कहां उनके देहांत की खबर छपी, कह नहीं सकता। कम से कम मैनें गाजियाबाद और दिल्‍ली के अखबारों में तो नहीं देखा।

जब हिंदी के अखबार अपनी भाषा के लेखक के साथ यह व्‍यवहार कर रहे हैं तो अंग्रेजी वालों से क्‍या अपेक्षा की जाती? विज्ञान लेखन में शुकदेव प्रसाद कोई नया नाम नहीं थे जिसे लोग जानते न हों। वह पूरे हिंदी पट्टी में इस समय अकेले ऐसे लेखक थे जो पूरी तरह विज्ञान लेखन को समर्पित थे। जो भी थोड़ा पढ़ने लिखने में रुचि लेने वाला होगा, वह उनके नाम से परिचित न हो ऐसा हो ही नहीं सकता।

जाहिर है जिन रिपोर्टरों ने उनकी खबर लिखी होगी, उनकी पढ़ने लिखने में वास्‍ता न होगा। वे बस नौकरी कर रहे हैं। यही हाल खबर को पास करने वाले और पेज पर लगाने वालों का होगा। उनकी अंत्‍येष्टि की खबर भी एक विज्ञप्ति पर बनी थी और अखबारों ने उसे जस का तस छाप दिया था। आज कल वाट्सएप पर बनी बनाई खबरें आती हैं और रिपोर्टर उन्‍हें वैसे ही आगे बढ़ा देता है।

पता नहीं हिंदी के पत्रकार पढ़ने लिखने की प्रवृत्ति कब विकसित करेंगे? आज खबरों की भाषा देखकर बहुत पीड़ा होती है। हिंदी के पत्रकारों की अंग्रेजी भी दयनीय होती है। यह एजेंसी की खबरों के अनुवाद को देख कर लगता है। पिछले दिनों दिल्‍ली के एक बड़े अखबार ने तोप के लिए बंदूक शब्‍द का प्रयोग किया। यह गन का हिंदी अनुवाद था। जो अखबार कभी अपनी भाषा और शुद्धता के लिए जाने जाते थे, उनमें भी ऐसी गलतियां हो रही हैं। आंकड़ों का तो भगवान ही मालिक है।

आज हिंदी पत्रकारिता दिवस पर मेरे साथी पढ़ने की आदत वि‍कसित करने का संकल्‍प तो लें ही। इसी से हिंदी और आपका भी मान बढ़ेगा।

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